Ratha Saptami 2024 रथ सप्तमी शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और नियम

Ratha Saptami 2024 : रथ सप्तमी के दिन से सूर्य के सातों घोड़े उनके रथ को वहन करना प्रारंभ करते हैं, इसलिए इसे रथ सप्तमी भी कहते हैं. इस दिन पूजा और उपवास से आरोग्य व संतान की प्राप्ति होती है, इसलिए इसको आरोग्य सप्तमी और पुत्र सप्तमी भी कहा जाता है.

 

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रथ सप्तमी शुभ मुहूर्त-

सप्तमी तिथि प्रारम्भ फरवरी 15, 2024 को 10:12 ए एम बजे

सप्तमी तिथि समाप्त – फरवरी 16, 2024 को 08:54 ए एम बजे

रथ सप्तमी के दिन अरुणोदय 06:36 ए एम

रथ सप्तमी के दिन अवलोकनीय सूर्योदय 06:58 ए एम

रथ सप्तमी के दिन स्नान मूहूर्त 05:18 ए एम से 06:58 ए एम

अवधि – 01 घण्टा 41 मिनट्स

Ratha Saptami 2024 

माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी मनाई जाती है. इस आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है. इस दिन को कश्यप ऋषि और अदिति के संयोग से भगवान सूर्य का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन को सूर्य की जन्मतिथि भी कहा जाता है. इस दिन पूजा और उपवास से आरोग्य व संतान की प्राप्ति होती है, इसलिए इसको आरोग्य सप्तमी और पुत्र सप्तमी भी कहा जाता है. इसी दिन से सूर्य के सातों घोड़े उनके रथ को वहन करना प्रारंभ करते हैं, इसलिए इसे रथ सप्तमी भी कहते हैं. इस साल रथ सप्तमी 16 फरवरी यानी आज मनाई जा रही है

घरों में बनाते हैं रंगोली-

 रथ सप्तमी के दिन महिलाएं घरों में सूर्य देव का स्वागत करने के लिए उनका या उनके रथ का चित्र बनाती हैं। इसके साथ ही घर के मुख्य दरवाजे पर रंगोली बनाती हैं। आंगन में मिट्टी के बर्तन में दूध रखा जाता है और सूर्य देव की गर्मी से इसे उबाला जाता है। इसके बाद दूध का इस्तेमाल सूर्य भगवान के लिए भोग बनाने में किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सूर्य देव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे। इस वजह से यह तिथि सूर्य देव के जन्मोत्सव या सूर्य जयंती के रूप में प्रचलित है।

अचला सप्तमी को लेकर प्रचलित कथा-

 
अचला सप्तमी की एक कथा के अनुसार, एक गणिका इन्दुमती ने वशिष्ठ मुनि के पास जाकर मुक्ति पाने का उपाय पूछा। मुनि ने कहा, ‘माघ मास की सप्तमी को अचला सप्तमी का व्रत करो।’ गणिका ने मुनि के बताए अनुसार व्रत किया। इससे मिले पुण्य से जब उसने देह त्यागी, तब उसे इन्द्र ने अप्सराओं की नायिका बना दिया। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत अधिक अभिमान हो गया था। शाम्ब ने अपने इसी अभिमानवश होकर दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। दुर्वासा ऋषि को शाम्ब की धृष्ठता के कारण क्रोध आ गया, जिसके पश्चात उन्होंने को शाम्ब को कुष्ठ हो जाने का श्राप दे दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र शाम्ब से भगवान सूर्य नारायण की उपासना करने के लिए कहा। शाम्ब ने भगवान कृष्ण की आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना करनी आरम्भ कर दी। जिसके फलस्वरूप सूर्य नारायण की कृपा से उन्हें अपने कुष्ठ रोग से मुक्ति प्राप्त हो गई।