भाषा – भाषा की परिभाषा ,अर्थ ,अंग ,भेद और प्रकार
भाषा
भाषा मुख से बोले जाने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। दूसरे शब्दों मनोगत भाव भक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने चार एक दूसरे पर प्रकट करते हैं। या मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके मन की बात बतलाई जाती है, उसे भाषा कहते हैं।”
भाषा क्या होती है?
“बोली- जबान वाणी”
भाषा वह साधन है, जिसके माध्यम से हम सोचते है और अपने विचारों को व्यक्त करते हैं। मनुष्य अपने विचार, भावनाओं एवं अनुभुतियों को भाषा के माध्यम से ही व्यक्त करता है।
”एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है, और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। भाषा संस्कृति का वाहन है और उसका अंग भी”। – रामविलास शर्मा
भाषा की परिभाषा
“भाषा एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं और जिसके लिए हम आवश्यक ध्वनियों का प्रयोग करते हैं।”
भाषा को प्राचीन काल से ही परिभाषित करने की कोशिश की जाती रही है। इसकी कुछ मुख्य परिभाषाएं निम्न हैं-
प्लेटो – ने सोफिस्ट में विचार और भाषा के संबंध में लिखते हुए कहा है कि, “विचार और भाषआ में थोड़ा ही अंतर है। विचार आत्मा की मूक या अध्वन्यात्मक बातचीत है पर वही जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती है तो उसे भाषा की संज्ञा देते हैं।”
वेंद्रीय कहते हैं कि, “भाषा एक तरह का चिह्न है। चिह्न से आशय उन प्रतीकों से है जिनके द्वारा मानव अपना विचा दूसरों पर प्रकट करता है। ये प्रतीक कई प्रकार के होते हैं जैसे नेत्रग्राह्य, श्रोत्र ग्राह्य और स्पर्श ग्राह्य। वस्तुतः भाषा की दृष्टि से श्रोत्रग्राह्य प्रतीक ही सर्वश्रेष्ठ है।”
ब्लाक तथा ट्रेगर के मतानुसार, “भाषा यादृच्छिक भाष प्रतिकों का तंत्र है जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह सहयोग करता है।”
स्त्रुत्वा लिखते हैं, “भाषा यादृच्छिक भाष प्रतीकों का तंत्र है जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह के सदस्य सहयोग एवं संपर्क करते हैं।”
भाषा का अर्थ
भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका अर्थ है बोलना या कहना अर्थात् भाषा वह है जिसे बोला जाय।
“भाषा यादृच्छिक वाचिक ध्वनि-संकेतों की वह पद्धति है, जिसके द्वारा मानव परम्परा विचारों का आदान-प्रदान करता है।” – स्पष्ट ही इस कथन में भाषा के लिए चार बातों पर ध्यान दिया गया है-
1. भाषा एक पद्धति है, यानी एक सुसम्बद्ध और सुव्यवस्थित योजना या संघटन है, जिसमें कर्ता, कर्म, क्रिया, आदि व्यवस्थिति रूप में आ सकते हैं।
2. भाषा संकेतात्कम है अर्थात् इसमे जो ध्वनियाँ उच्चारित होती हैं, उनका किसी वस्तु या कार्य से सम्बन्ध होता है। ये ध्वनियाँ संकेतात्मक या प्रतीकात्मक होती हैं।
3. भाषा वाचिक ध्वनि-संकेत है, अर्थात् मनुष्य अपनी वागिन्द्रिय की सहायता से संकेतों का उच्चारण करता है,
4. भाषा यादृच्छिक संकेत है। यादृच्छिक से तात्पर्य है ऐच्छिक, अर्थात् किसी भी विशेष ध्वनि का किसी विशेष अर्थ से मौलिक अथवा दार्शनिक सम्बन्ध नहीं होता।
प्रत्येक भाषा में किसी विशेष ध्वनि को किसी विशेष अर्थ का वाचक ‘मान लिया जाता’ है। फिर वह उसी अर्थ के लिए रूढ़ हो जाता है। कहने का अर्थ यह है कि वह परम्परानुसार उसी अर्थ का वाचक हो जाता है। दूसरी भाषा में उस अर्थी का वाचक कोई दूसरा शब्द होगा।
हम व्यवहार में यह देखते हैं कि भाषा का सम्बन्ध एक व्यक्ति से लेकर सम्पूर्ण विश्व-सृष्टि तक है। व्यक्ति और समाज के बीच व्यवहार में आने वाली इस परम्परा से अर्जित सम्पत्ति के अनेक रूप हैं। समाज सापेक्षता भाषा के लिए अनिवार्य है, ठीक वैसे ही जैसे व्यक्ति सापेक्षता।
भाषा संकेतात्मक होती है। अर्थात् वह एक प्रतीक स्थिति है। इसकी प्रतीकात्मक गतिविधि के चार प्रमुख संयोजक है: दो व्यक्ति- एक वह जो संबोधित करता है, दूसरा वह जिसे संबोधित किया जाता है, तीसरी संकेतित वस्तु और चौथी- प्रतीकात्मक संवाहक जो संकेतित वस्तु की ओर प्रतिनिधि भंगिमा के साथ संकेत करता है।
भाषा में शैली
विकास की प्रक्रिया में भाषा का दायरा भी बढ़ता जाता है। यही नहीं एक समाज में एक जैसी भाषा बोलने वाले व्यक्तियों का बोलने का ढंग, उनकी उच्चारण-प्रक्रिया, शब्द-भंडार, वाक्य-विन्यास आदि अलग-अलग हो जाने से उनकी भाषा में पर्याप्त अन्तर आ जाता है। इसी को भाषा की शैली कह सकते हैं।
भाषा के प्रकार (भेद)
भाषा बोलने, लिखने और समझने की आधार पर तीन प्रकार की होती हैं, अर्थात भाषा के तीन प्रकार के भेद या रूप होते हैं- मौखिक, लिखित और सांकेतिक भाषा।
1. मौखिक भाषा
2. लिखित भाषा
3. सांकेतिक भाषा
मौखिक भाषा
भाषा के जिस रूप से हम अपने विचार एवं भाव बोलकर प्रकट करते हैं अथवा दूसरों के विचार अथवा भाव सुनकर ग्रहण करते हैं, उसे मौखिक भाषा कहते हैं। उदाहरण के लिए जब हम किसी से फोन पर बात करते हैं तो भाषा के मौखिक रूप का प्रयोग करते हैं।
भाषा का मौखिक रूप सीखने के लिए विशेष प्रयल नहीं करना पड़ता है, उदाहरण के लिए हम अपनी-अपनी मातृभाषा को परिवार और समाज से अनुकरण द्वारा स्वयं सीख जाते हैं।
लिखित भाषा
जब हम मन के भावों तथा विचारों को लिखकर प्रकट करते हैं, तो वह भाषा का लिखित रूप कहलाता है। लिखित भाषा के उदाहरण निम्न है-पत्र, लेख, समाचार पत्र, कहानी, जीवनी संस्मरण, तार इत्यादि।
भाषा का लिखित रूप सीखने के लिए विशेष अध्ययन की आवश्यकता होती है। किसी भी भाषा को लिखने के लिए उसके वर्णों, शब्दों, वाक्यों अर्थात व्याकरण का सम्पूर्ण ज्ञान होना जरूरी है।
सांकेतिक भाषा
संकेत भाषा या सांकेतिक भाषा एक ऐसी भाषा है, जिसको हम विभिन्न प्रकार के दृश्य संकेतों (जैसे हस्तचालित संकेत, अंग-संकेत) के माध्यम से व्यक्त करतें हैं। इसमें बोलनें वाले के विचारों को धाराप्रवाह रूप से व्यक्त करने के लिए, हाथ के आकार, विन्यास और संचालन, बांहों या शरीर तथा चेहरे के हाव-भावों का एक साथ उपयोग किया जाता है।
उदाहरण के लिए- छोटे बच्चे और उसकी माँ के बीच की भाषा सांकेतिक भाषा है। छोटा बच्चा अपनी समस्याओं और इच्छाओं को विभिन्न संकेतों के माध्यम से बताता है, जैसे- अधिकतर बच्चों को जब भूख लगती है तो वह रोने लगते हैं।
सांकेतिक भाषा का प्रयोग अधिकतर ऐसे व्यक्तियों के लिए होता जो शारीरिक रूप से दिव्यांग होते है, जैसे- कान और मुख से अपंग।
मानक भाषा
भाषा के स्थिर तथा सुनिश्चित रूप को मानक या परिनिष्ठित भाषा कहते हैं। मानक भाषा शिक्षित वर्ग की शिक्षा, पत्राचार एवं व्यवहार की भाषा होती है। इसके व्याकरण तथा उच्चारण की प्रक्रिया लगभग निश्चित होती है। मानक भाषा को टकसाली भाषा भी कहते हैं। इसी भाषा में पाठ्य-पुस्तकों का प्रकाशन होता है। हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच,संस्कृत तथा ग्रीक इत्यादि मानक भाषाएँ हैं।
किसी भाषा के मानक रूप का अर्थ है, उस भाषा का वह रूप जो उच्चारण, रूप-रचना, वाक्य-रचना, शब्द और शब्द- रचना, अर्थ, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, प्रयोग तथा लेखन आदि की दृष्टि से, उस भाषा के सभी नहीं तो अधिकांश सुशिक्षित लोगों द्वारा शुद्ध माना जाता है।
सम्पर्क भाषा
अनेक भाषाओं के अस्तित्व के बावजूद जिस विशिष्ट भाषा के माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति, राज्य-राज्य तथा देश-विदेश के बीच सम्पर्क स्थापित किया जाता है उसे सम्पर्क भाषा कहते हैं। एक ही भाषा परिपूरक भाषा और सम्पर्क भाषा दोनों ही हो सकती है। आज भारत मे सम्पर्क भाषा के तौर पर हिन्दी प्रतिष्ठित होती जा रही है जबकि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी संपर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो गई है।
अन्धो की भाषा (नेत्रहीन)
ऐसे व्यक्ति जिनकी आँखों में समस्या होती है अर्थात जिन्हें दिखाई नहीं देता उन्हें अंधा कहते हैं। ऐसे अधिकांश व्यक्ति जो बोलना और सुनना तो जानते हैं पर लिखने और पढ़ने में समस्या होती हैं, उनके लिए एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने “ब्रेल पद्धति” का आविष्कार किया। ब्रेल एक तरह की लिपि है, जिसको विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है।
भाषा के अंग
भाषा के मुख्य पाँच अंग होते हैं, जो कि इस प्रकार हैं- ध्वनि, वर्ण, शब्द, वाक्य और लिपि। सभी भाषा के अंगों का विवरण निम्नलिखित है-
1. ध्वनि- हमारे मुख से निकलने प्रत्येक स्वतंत्र आवाज ध्वनि होती है। और ये ध्वनियाँ हमेशा मौखिक भाषा में प्रयोग होतीं हैं।
2. वर्ण- वह मूल ध्वनि जिसके और टुकड़े ना किये जा सके, वह वर्ण कहलाते हैं। जैसे- अ, क्, भू, म्, त् आदि।
3. शब्द- वर्णों का वह समूह जिसका कोई अर्थ निकलता है, उसे शब्द कहते हैं। जैसे- क् + अ + म् + अ + ल् + अ = कमल, भ् + आ + ष् + आ = भाषा ।
4. वाक्य – सार्थक शब्दों का वह समूह जिसका कोई अर्थ निकलता है, उसे वाक्य कहते हैं। जैसे- कमल हिन्दी भाषा पढ़ रहा है। यदि हम इस वाक्य को “हिन्दी है रहा कमल पढ़ भाषा” लिख दे दो इसका कोई अर्थ नहीं निकलता, तो हम इसे वाक्य नहीं कह सकते।
5. लिपि- मौखिक भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें लिपि कहते हैं। जैसे- हिन्दी भाषा की “देवनागरी लिपि” है।