संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN)

संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) 1945 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। वर्तमान में इसमें शामिल सदस्य राष्ट्रों की संख्या 193 है।

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Table of Contents

इसका मिशन एवं कार्य इसके चार्टर में निहित उद्देश्यों और सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होता है तथा संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों व विशेष एजेंसियों द्वारा इन्हें कार्यान्वित किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN)

परिचय

संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) 1945 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। वर्तमान में इसमें शामिल सदस्य राष्ट्रों की संख्या 193 है।

इसका मिशन एवं कार्य इसके चार्टर में निहित उद्देश्यों और सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होता है तथा संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों व विशेष एजेंसियों द्वारा इन्हें कार्यान्वित किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र के कार्यों में अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना, मानवाधिकारों की रक्षा करना, मानवीय सहायता पहुँचाना, सतत् विकास को बढ़ावा देना और अंतर्राष्ट्रीय कानून का भली-भाँति कार्यान्वयन करना शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का इतिहास

वर्ष 1899 में विवादों और संकट की स्थितियों को शांति से निपटाने, युद्धों को रोकने एवं युद्ध के नियमों को संहिताबद्ध करने हेतु हेग (Hague) में अंतर्राष्ट्रीय शांति सम्मेलन आयोजित किया गया था।


इस सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय विवादों के शांतिप्रद निपटान के लिये कन्वेंशन को अपनाया गया एवं वर्ष 1902 में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय की स्थापना की गई, जिसने वर्ष 1902 में कार्य करना प्रारंभ किया। यह संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की पूर्ववर्ती संस्था थी।


संयुक्त राष्ट्र की पूर्ववर्ती संस्था लीग ऑफ नेशंस थी, यह एक ऐसा संगठन है जिस पर प्रथम विश्व युद्ध की परिस्थितियों में पहली बार विचार किया गया और वर्ष 1919 में वर्साय की संधि के तहत “अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने व शांति और सुरक्षा प्राप्त करने के लिये स्थापित किया गया था।”


अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) की स्थापना भी वर्ष 1919 में वर्साय की संधि (Treaty of Versailles) के तहत राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में की गई थी।


“संयुक्त राष्ट्र” नाम संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट द्वारा दिया गया था। वर्ष 1942 में “संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र” पर 26 देशों ने हस्ताक्षर किये, जिसमें उन्होंने अपनी-अपनी सरकारों द्वारा एक्सिस पॉवर्स (रोम-बर्लिन-टोक्यो एक्सिस) के खिलाफ संघर्ष जारी रखने का वचन दिया तथा उन्हें शांति स्थापित करने के लिये बाध्य किया।


अंतर्राष्ट्रीय संगठन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (1945)


यह सम्मेलन सेन फ्रांसिस्को (USA) में आयोजित किया गया, इसमें 50 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया एवं संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये।


वर्ष 1945 का संयुक्त राष्ट्र चार्टर एक अंतर-सरकारी संगठन के रूप में संयुक्त राष्ट्र की आधारभूत संधि है।


घटक
संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अंग हैं:

1.संयुक्त राष्ट्र महासभा।
2.सुरक्षा परिषद।
3.संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद।
4.संयुक्त राष्ट्र न्यास परिषद।
5.अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय।
6.संयुक्त राष्ट्र सचिवालय।

इन सभी 6 अंगों की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय की गई थी।

1. संयुक्त राष्ट्र महासभा

महासभा संयुक्त राष्ट्र का महत्त्वपूर्ण अंग है। यह विचार-विमर्श, नीति-निर्धारण जैसे कार्यों के लिये उत्तरदायी है।

महासभा में संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व है, जो इसे सार्वभौमिक प्रतिनिधित्व वाला एकमात्र संयुक्त राष्ट्र निकाय बनाता है।

प्रतिवर्ष सितंबर में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों की वार्षिक महासभा का आयोजन न्यूयॉर्क के जनरल असेंबली में किया जाता है और इसमें सामान्य बहस होती है, तथा कई राष्ट्र प्रमुखता से भाग लेते हैं।

महासभा में महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर निर्णय लेने जैसे कि शांति एवं सुरक्षा, नए सदस्यों के प्रवेश तथा बजटीय मामलों के लिये दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। अन्य प्रश्नों पर निर्णय साधारण बहुमत से लिया जाता है।

महासभा के अध्यक्ष को प्रत्येक वर्ष महासभा द्वारा एक वर्ष के कार्यकाल के लिये चुना जाता है।

हाल ही में मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद को 2021-22 के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) के 76वें सत्र के अध्यक्ष के रूप में चुना गया।

6 मुख्य समितियाँ:  महासभा के लिये मसौदा प्रस्ताव इसकी छह मुख्य समितियों द्वारा तैयार किया जा सकता है:

(1) प्रथम समिति – निरस्त्रीकरण एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा,
(2) द्वितीय समिति- आर्थिक एवं वित्तीय,
(3) तृतीय समिति – सामाजिक, मानवीय एवं सांस्कृतिक,
(4) चतुर्थ समिति – विशेष राजनीतिक एवं विऔपनिवेशीकरण,
(5) पंचम समिति- प्रशासनिक एवं बजटीय तथा
(6) छठी समिति- कानूनी।

मुख्य समिति में प्रत्येक सदस्य राष्ट्र का प्रतिनिधित्व केवल एक व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है तथा अन्य समितियाँ ऐसे भी स्थापित की जा सकती हैं, जिनमें सभी सदस्य राष्ट्रों को प्रतिनिधित्व का अधिकार हो।
सदस्य राष्ट्र इन समितियों के सलाहकारों, तकनीकी सलाहकारों, विशेषज्ञों या समान दर्जे वाले व्यक्तियों को भी नियुक्त कर सकते हैं।

अन्य समितियाँ:

महासमिति: महासभा एवं इसकी समितियों की प्रगति की समीक्षा करने और इसे आगे बढ़ाने के लिये सिफारिश करने हेतु यह प्रत्येक सत्र में समय-समय पर बैठक आयोजित करती है। यह महासभा के अध्यक्ष एवं 21 उपाध्यक्षों और छह मुख्य समितियों के अध्यक्षों से मिलकर बनी होती है।

सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्य करते हैं।

साख समिति:  इसका कार्य सदस्य राज्यों के प्रतिनिधियों की साख (Credentials) की जाँच करना एवं महासभा को रिपोर्ट करना है।

2. सुरक्षा परिषद

संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा इसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी है।

सुरक्षा परिषद पंद्रह सदस्य राज्यों से मिलकर बनी है, जिसमें पाँच स्थायी सदस्य हैं- चीन, फ्राँस, रूस, यूनाइटेड किंगडम एवं संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दस गैर-स्थायी सदस्य महासभा द्वारा दो वर्ष के लिये क्षेत्रीय आधार पर चुने जाते हैं।

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में पाँच नए अस्थायी सदस्यों (अल्बानिया, ब्राज़ील, गैबॉन, घाना और संयुक्त अरब अमीरात) का चयन किया गया है।

एस्टोनिया, नाइजर, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस, ट्यूनीशिया व वियतनाम ने हाल ही में अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है।

अल्बानिया पहली बार सुरक्षा परिषद में शामिल हो रहा है, जबकि ब्राज़ील 11वीं बार सुरक्षा परिषद में अस्थायी सदस्य के तौर पर शामिल हो रहा है। गैबॉन और घाना पहले तीन बार परिषद में रहे हैं तथा संयुक्त अरब अमीरात एक बार परिषद में शामिल हो चुका है।
भारत ने पिछले वर्ष (2021) आठवीं बार एक अस्थायी सदस्य के रूप में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रवेश किया था और दो वर्ष यानी वर्ष 2021-22 तक परिषद में रहेगा।

“वीटो पावर” सुरक्षा परिषद के किसी भी प्रस्ताव को वीटो (अस्वीकार) करने के लिये स्थायी सदस्य की शक्ति को संदर्भित करती है।

पाँच स्थायी सदस्यों के पास बिना शर्त वीटो पावर का होना संयुक्त राष्ट्र के सबसे अलोकतांत्रिक लक्षण के रूप में माना जाता है।

आलोचकों का यह भी दावा है कि वीटो पावर युद्ध अपराध एवं मानवता के खिलाफ अपराधों पर अंतर्राष्ट्रीय निष्क्रियता का मुख्य कारण है। हालाँकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 1945 में जब तक उसे वीटो नहीं दिया गया संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने से इनकार कर दिया। राष्ट्र संघ (League of Nations) से संयुक्त राज्य अमेरिका की अनुपस्थिति ने इसके अप्रभावी होने में योगदान दिया। वीटो पावर के समर्थक इसे अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता के प्रवर्तक, सैन्य हस्तक्षेप के खिलाफ एक जाँच और अमेरिकी प्रभुत्व के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा कवच के रूप में मानते हैं।

3. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद

यह समन्वय, नीति समीक्षा, नीतिगत संवाद, आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय मुद्दों पर सिफारिशों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लक्ष्यों के कार्यान्वयन हेतु प्रमुख निकाय है।

इसमें महासभा द्वारा तीन वर्ष की अवधि के लिये निर्वाचित 54 सदस्य होते हैं।

यह सतत् विकास पर बहस एवं अभिनव सोच के लिये संयुक्त राष्ट्र का केंद्रीय मंच है।
प्रतिवर्ष ECOSOC सतत् विकास के लिये वैश्विक महत्त्व की वार्षिक थीम के इर्द-गिर्द अपनी कार्य संरचना बनाता है। यह ECOSOC के साझेदारों एवं संपूर्ण संयुक्त राष्ट्र विकास प्रणाली पर ध्यान केंद्रित करता है।

यह संयुक्त राष्ट्र की 14 विशिष्ट एजेंसियों, दस कार्यात्मक आयोगों और पाँच क्षेत्रीय आयोगों के कार्यों का समन्वय करता है, नौ संयुक्त राष्ट्र निधियों और कार्यक्रमों से रिपोर्ट प्राप्त करता है तथा संयुक्त राष्ट्र प्रणाली व सदस्य राज्यों के लिये नीतिगत सिफारिशें जारी करता है।

ECOSOC से जुड़े निकाय

विशिष्ट एजेंसियाँ

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
संयुक्त राष्ट्र का खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO)
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को)
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
विश्व बैंक समूह
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO)
अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO)
अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU)
सार्वभौमिक डाक संघ (UPU)
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO)
विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO)
अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष (IFAD)
संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO)
विश्व पर्यटन संगठन (WTO)

कार्यात्मक आयोग

सांख्यिकीय आयोग
जनसंख्या एवं विकास आयोग
सामाजिक विकास आयोग
मानवाधिकार आयोग
महिलाओं की स्थिति पर आयोग
नारकोटिक ड्रग्स आयोग
अपराध रोकथाम एवं आपराधिक न्याय आयोग
विकास के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आयोग
सतत् विकास आयोग
वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम

क्षेत्रीय आयोग

अफ्रीका आर्थिक आयोग (ECA)
एशिया एवं प्रशांत आर्थिक और सामाजिक आयोग (ESCAP)
यूरोप आर्थिक आयोग (ECE)
लैटिन अमेरिका एवं कैरेबिया आर्थिक आयोग (ECLAC)
पश्चिमी एशिया आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (ESCWA)

स्थायी समितियाँ

कार्यक्रम एवं समन्वय समिति
मानव अधिवास आयोग
गैर-सरकारी संगठनों पर समिति
अंतर-सरकारी एजेंसियों के साथ वार्ता हेतु समिति
ऊर्जा एवं प्राकृतिक संसाधन समिति

तदर्थ निकाय

सूचना विज्ञान पर तदर्थ ओपन-एंडेड वर्किंग ग्रुप
सरकारी विशेषज्ञों से मिलकर बने विशेषज्ञ निकाय

खतरनाक वस्तुओं के परिवहन एवं रसायनों के वर्गीकरण व लेबलिंग की वैश्विक स्तर पर सामंजस्यपूर्ण प्रणाली पर विशेषज्ञों की समिति
भौगोलिक नामों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का समूह
व्यक्तिगत रूप से सेवारत सदस्यों से बने विशेषज्ञ निकाय

विकास नीति के लिये समिति
लोक प्रशासन एवं वित्त में संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम पर विशेषज्ञों की बैठक
टैक्स मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर विशेषज्ञों के तदर्थ समूह
आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर समिति
विकास के लिये ऊर्जा एवं प्राकृतिक संसाधनों पर समिति
स्थानीय मुद्दों पर स्थायी मंच

संबंधित निकाय

अंतर्राष्ट्रीय नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड
महिलाओं की उन्नति के लिये अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के संरक्षकों का बोर्ड
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या पुरस्कार समिति
एचआईवी /एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम का कार्य समन्वय बोर्ड
कोष एवं कार्यक्रम जो ECOSOC को रिपोर्ट भेजते हैं
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ)
व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD)
महिलाओं के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास कोष
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)
शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त का कार्यालय (UNHCR)
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA)
फिलिस्तीनी शरणार्थियों हेतु कार्य करने वाली संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UNRWA)
ड्रग कंट्रोल एवं अपराध निवारण कार्यालय (ODCCP)
*विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP)
यूएन-हैबिटेट

4. न्यास परिषद (Trusteeship Council)

इसकी स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा अध्याय XIII के तहत की गई थी।

न्यास क्षेत्र संयुक्त राष्ट्र के न्यास परिषद द्वारा एक प्रशासनिक प्राधिकरण के तहत रखा गया एक गैर-स्वशासित क्षेत्र है।

लीग ऑफ नेशंस का अधिदेश प्रथम विश्व युद्ध के बाद कुछ क्षेत्रों का नियंत्रण एक देश से दूसरे देश को स्थानांतरित करने का एक कानूनी उपकरण था जिसमें राष्ट्र संघ की ओर से क्षेत्र को प्रशासित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय रूप से सहमत शर्तें शामिल थीं।

संयुक्त राष्ट्र के न्यास क्षेत्र (Trust Territories) शेष राष्ट्रों में संघ अधिदेशों को लागू करने हेतु उत्तरदायी थे, और ये तब अस्तित्व में आए जब लीग ऑफ नेशंस का अस्तित्व वर्ष 1946 में समाप्त हो गया।

इसे 11 न्यास क्षेत्रों के लिये अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षण प्रदान करना था जिन्हें सात सदस्य राज्यों के प्रशासन के तहत रखा गया था और साथ ही इन क्षेत्रों के स्व-शासन एवं स्वतंत्रता हेतु पर्याप्त कदम उठाए गए थे।

वर्ष 1994 तक सभी न्यास क्षेत्रों ने स्व-सरकार या स्वतंत्रता प्राप्त कर ली थी। न्यास परिषद ने 1 नवंबर, 1994 में संचालन बंद कर दिया।

5. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice- ICJ)) संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है। यह जून 1945 में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा स्थापित किया गया था और अप्रैल 1946 से इसने कार्य करना शुरू किया था।


अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने अंतर्राष्ट्रीय न्याय के स्थायी न्यायालय ((Permanent Court of International Justice- PCIJ) का स्थान लिया जिसकी स्थापना राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 1920 में की गई थी।

6. सचिवालय

सचिवालय में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एवं हज़ारों संयुक्त राष्ट्र कर्मचारी सदस्य शामिल होते हैं, जो महासभा और संगठन के अन्य प्रमुख अंगों द्वारा अधिदेशित संयुक्त राष्ट्र के दिन-प्रतिदिन के कार्यों को पूर्ण करते हैं।

महासचिव संगठन का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी होता है, जिसे सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा पाँच वर्ष के लिये नियुक्त किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एंटोनियो गुटेरेस (Antonio Guterres) को 1 जनवरी, 2022 से 31 दिसंबर, 2026 तक के लिये दूसरे कार्यकाल हेतु नौवें संयुक्त राष्ट्र महासचिव (UNSG) के रूप में नियुक्त किया।

संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों की अंतर्राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर नियुक्तियाँ की जाती हैं और ये अपने कार्यस्थलों एवं संपूर्ण विश्व के शांति अभियानों पर काम करते हैं।

निधि, कार्यक्रम, विशिष्ट एजेंसियाँ एवं अन्य

संयुक्त राष्ट्र प्रणाली जिसे अनौपचारिक रूप से “संयुक्त राष्ट्र परिवार” के रूप में भी जाना जाता है, संयुक्त राष्ट्र संघ (6 मुख्य अंगों) और कई संबद्ध कार्यक्रमों, कोष एवं विशिष्ट एजेंसियों से बना है, सभी का स्वयं की सदस्यता, नेतृत्त्व एवं बजट होता है।

कोष एवं कार्यक्रम

यूनिसेफ

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ), जिसे मूल रूप से संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष के रूप में जाना जाता है, वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा बनाया गया था, इसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध से तबाह हुए देशों में बच्चों एवं माताओं को आपातकालीन भोजन तथा स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिये की गई थी।

वर्ष 1950 में यूनिसेफ के अधिदेश को विकासशील देशों में बच्चों एवं महिलाओं की दीर्घकालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विस्तारित किया गया था।
वर्ष 1953 में यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का एक स्थायी हिस्सा बन गया और संगठन के नाम से “अंतर्राष्ट्रीय” एवं “आपातकाल” शब्दों को हटा दिया गया, हालाँकि इसके मूल संक्षिप्त नाम “यूनिसेफ” को बरकरार रखा गया।

कार्यकारी बोर्ड:  यह 36 सदस्यीय बोर्ड, नीतियों का निर्माण करता है, कार्यक्रमों को मंज़ूरी देता है एवं प्रशासनिक तथा वित्तीय योजनाओं की देख-रेख करता है। इसके सदस्य सरकारी प्रतिनिधि होते हैं जो आमतौर पर तीन वर्ष के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) द्वारा चुने जाते हैं।
यूनिसेफ सरकारों एवं निजी दानकर्ताओं के योगदान पर निर्भर करता है।
यूनिसेफ का आपूर्ति प्रभाग कोपेनहेगन (डेनमार्क) में स्थित है और यह HIV पीड़ित बच्चों एवं माताओं के लिये टीके, एंटीरेट्रोवायरल दवाओं, पोषण संबंधी खुराक तथा शैक्षणिक सामग्री आपूर्ति जैसी आवश्यक वस्तुओं के वितरण के प्राथमिक बिंदु के रूप में कार्य करता है और आपातकालीन आश्रयों एवं परिवारों के पुनर्मिलन के लिये भी अपनी सेवाएँ देता है।
यूनिसेफ की हालिया पहल:
चिल्ड्रेन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स
सहायक प्रौद्योगिकी पर पहली वैश्विक रिपोर्ट (जीआरईएटी)।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA)

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA), जिसे पूर्व में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या गतिविधियों के लिये कोष के रूप में जाना जाता था, यह संयुक्त राष्ट्र की यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी है।
संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ईसीओएसओसी) अपने जनादेश को स्थापित करता है।
यूएनएफपीए स्वास्थ्य (एसडीजी 3), शिक्षा (एसडीजी 4) और लिंग समानता (एसडीजी 5) पर सतत्् विकास लक्ष्यों से निपटने के लिये सीधे कार्य करता है
इसका उद्देश्य एक ऐसे विश्व का निर्माण करना है जहाँ प्रत्येक गर्भावस्था वांछित हो, ‘प्रत्येक प्रसव सुरक्षित हो’ और प्रत्येक युवा क्षमता से परिपूर्ण हो।
वर्ष 2018 में UNFPA ने तीन महत्त्वाकांक्षी परिवर्तनकारी परिणाम प्राप्त करने का किया जो वैश्विक स्तर पर प्रत्येक पुरुष, महिला एवं बच्चे के लिये परिवर्तन का वादा करता है:
परिवार नियोजन की आवश्कताओं को पूरा करना।
निवारक मातृ मृत्यु को समाप्त करना।
लिंग आधारित हिंसा एवं हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करना।
यूएनएफपीए प्रकाशन:
विश्व जनसंख्या रिपोर्ट की स्थिति

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)

*संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) संयुक्त राष्ट्र का वैश्विक विकास नेटवर्क है।
*UNDP की स्थापना वर्ष 1965 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी।
यह अल्पविकसित देशों को सहायता प्रदान करने पर ज़ोर देने के साथ ही विकासशील देशों के लिये विशेषज्ञ सलाह, प्रशिक्षण एवं अनुदान सहायता सुनिश्चित करता है।
*UNDP कार्यकारी बोर्ड संपूर्ण विश्व के 36 देशों के प्रतिनिधियों से मिलकर बना होता है जिसमें प्रत्येक तीन वर्ष बाद बारी-बारी से अलग-अलग देशों के प्रतिनिधि अपनी सेवाएँ देते हैं।
*यह पूर्णतः सदस्य देशों के स्वैच्छिक योगदान द्वारा वित्तपोषित है।
*UNDP संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास समूह (United Nations Sustainable Development Group- UNSDG) का मुख्य केंद्र है, यह एक ऐसा नेटवर्क है जो 165 देशों में फैला है तथा सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा को आगे बढ़ाने हेतु काम कर रहे संयुक्त राष्ट्र के 40 कोषों, कार्यक्रमों, विशेष एजेंसियों एवं अन्य निकायों को एकजुट करता है।
*यूएनडीपी प्रकाशन: मानव विकास सूचकांक

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) एक वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है जो वैश्विक पर्यावरण एजेंडा तैयार करता है, यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंदर सतत् विकास के पर्यावरणीय आयाम के सुसंगत कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है।
इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा जून 1972 में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के मानव पर्यावरण सम्मेलन (स्टॉकहोम सम्मेलन) के परिणामस्वरूप हुई थी।
UNEP एवं विश्व मौसम विज्ञान संगठन ( World Meteorological Organization- WMO) ने नवीनतम विज्ञान पर आधारित जलवायु परिवर्तन का आकलन करने के लिये वर्ष 1988 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की स्थापना की।
इसकी स्थापना के बाद से UNEP ने बहुपक्षीय पर्यावरणीय समझौतों (Multilateral Environmental Agreement- MEA) के विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में UNEP द्वारा निम्नलिखित नौ MEA के सचिवालयों की मेज़बानी की जाती है:
जैव विविधता पर कन्वेंशन (CBD)।
वन्य जीवों एवं वनस्पतियों के लुप्तप्राय प्रजातियों पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES)।
वन्य जीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर कन्वेंशन (CMS)।
ओजोन परत के संरक्षण के लिये वियना कन्वेंशन।
पारे पर मिनामाता कन्वेंशन।
खतरनाक अपशिष्ट एवं उनके निपटान के सीमा पारीय आवगमन के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन।
स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम कन्वेंशन।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कुछ खतरनाक रसायनों एवं कीटनाशकों के लिये पूर्व सूचित सहमति प्रक्रिया पर रॉटरडैम कन्वेंशन।
मुख्यालय: नैरोबी, केन्या
प्रकाशन:
‘मेकिंग पीस विद नेचर’ रिपोर्ट
उत्सर्जन गैप रिपोर्ट
अनुकूलन गैप रिपोर्ट
वैश्विक पर्यावरण आउटलुक
फ्रंटियर्स
स्वस्थ ग्रह में निवेश
प्रमुख अभियान:
बीट पॉल्यूशन
यूएन 75
विश्व पर्यावरण दिवस
वाइल्ड फॉर लाइफ

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (The United Nations Environment Assembly- UNEA) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का प्रशासनिक निकाय है।
यह पर्यावरण के संदर्भ में निर्णय लेने वाली विश्व की सर्वोच्च स्तरीय निकाय है।
यह पर्यावरणीय सभा 193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य राज्यों से बनी है जो वैश्विक पर्यावरण नीतियों हेतु प्राथमिकताएंँ निर्धारित करने और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून विकसित करने के लिये द्विवार्षिक रूप से आयोजित की जाती है।
सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा का गठन जून 2012 में किया गया। धातव्य है कि सतत्् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन को RIO+20 के रूप में भी संदर्भित किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र मानव अधिवास कार्यक्रम (UN-Habitat)

संयुक्त राष्ट्र मानव अधिवास कार्यक्रम (UN-Habitat) एक बेहतर शहरी भविष्य की दिशा में काम करने वाला संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम है।
इसका उद्देश्य सामाजिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से स्थायी मानव अधिवास के विकास तथा सभी के लिये पर्याप्त आश्रय की उपलब्धता को बढ़ाना है।
इसे वर्ष 1978 में कनाडा के वैंकूवर में मानव अधिवास एवं सतत् शहरी विकास (हैबिटेट प्रथम) पर पहले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के परिणामस्वरूप स्थापित किया गया था।
इस्तांबुल, तुर्की में वर्ष 1996 में मानव अधिवास (हैबिटेट द्वितीय) पर आयोजित द्वितीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन ने हैबिटेट एजेंडा के तहत निम्नलिखित दो लक्ष्य निर्धारित किये गए:
सभी के लिये पर्याप्त आश्रय।
एक शहरीकृत विश्व में धारणीय मानव अधिवास का विकास।
आवास एवं सतत् शहरी विकास (हैबिटेट तृतीय) पर तृतीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का आयोजन वर्ष 2016 में क्वीटो, इक्वाडोर में किया गया था। इसने सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) के लक्ष्य -11 को विस्तृत किया: “शहरों एवं मानव अधिवास को समावेशी, सुरक्षित, क्षमतावान एवं धारणीय बनाना।
संयुक्त राष्ट्र-पर्यावास (UN-Habitat) का मुख्यालय नैरोबी, केन्या के संयुक्‍त राष्‍ट्र कार्यालय में है।
हाल ही में यूएन-हैबिटेट ने जयपुर शहर से जुड़े मुद्दों जैसे- बहु जोखिम भेद्यता, कमज़ोर गतिशीलता और ग्रीन-ब्लू अर्थव्यवस्था की पहचान की है, इसके साथ ही शहर में स्थिरता बढ़ाने के लिये एक योजना तैयार की है।

विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP):

यह एक अग्रणी मानवीय संगठन है जो आपात स्थिति में खाद्य सहायता प्रदान कर एवं पोषण में सुधार के लिये समुदायों के साथ काम करके कई लोगों के जीवन को बचा रहा है तथा उनके जीवन में परिवर्तन ला रहा है।
विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme- WFP) की स्थापना वर्ष 1963 में खाद्य और कृषि संगठन तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी।

डब्ल्यूएफपी से संबंधित पहल:

शेयर द मील
खाद्य संकट पर वैश्विक रिपोर्ट
यह रिपोर्ट GNAFC का प्रमुख प्रकाशन है और इसे खाद्य सुरक्षा सूचना नेटवर्क (FSIN) द्वारा सुगम बनाया गया है। FSIN खाद्य और कृषि संगठन (FAO), विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) द्वारा सह-प्रायोजित एक वैश्विक पहल है, जो विश्लेषण और निर्णय लेने हेतु मार्गदर्शन के लिये विश्वसनीय और सटीक डेटा तैयार करता है तथा खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सूचना प्रणाली को मज़बूती प्रदान करता है। .
हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के साथ 50,000 मीट्रिक टन गेहूँ के वितरण हेतु एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसे मानवीय सहायता के हिस्से के रूप में अफगानिस्तान भेजा जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट एजेंसियाँ

संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट एजेंसियाँ

संयुक्त राष्ट्र के साथ काम करने वाले स्वायत्त संगठन है। इन सभी को संयुक्त राष्ट्र के साथ संबंधों में समझौतों के माध्यम से लाया गया था।
इनमें से कुछ प्रथम विश्व युद्ध से पहले भी अस्तित्व में थीं। कुछ राष्ट्र संघ से जुड़ी थीं तथा अन्य की स्थापना लगभग संयुक्त राष्ट्र के साथ ही की गई थी। इनकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र द्वारा उभरती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये की गई थी।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 5 एवं 63 में विशिष्ट एजेंसियों के निर्माण का प्रावधान है।

खाद्य और कृषि संगठन (FAO)

वर्ष 1945 में खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) का गठन क्यूबेक सिटी, कनाडा में संयुक्त राष्ट्र के पहले सत्र में किया गया था।
FAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो भुखमरी को समाप्त करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्त्व करती है।
FAO ज्ञान एवं सूचना का भी एक स्रोत है, यह विकासशील देशों को कृषि, वानिकी एवं मत्स्य पालन जैसे कार्यों में आधुनिक एवं परिवर्तनकारी सुधार करने में मदद करता है, ताकि सभी के लिये सुपोषण एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO)

शिकागो कन्वेंशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organization- ICAO) की स्थापना वर्ष 1944 में संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी के रूप में की गई थी। यह अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन (शिकागो कन्वेंशन) पर कन्वेंशन के प्रशासन एवं संचालन को प्रबंधित करता है।
यह अंतर्राष्ट्रीय हवाई नेविगेशन के सिद्धांतों एवं तकनीक प्रदान करता है। साथ ही सुरक्षित एवं क्रमबद्ध वृद्धि सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय हवाई परिवहन की योजना तथा उसके विकास को बढ़ावा देता है।

कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD)

कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (International Fund for Agricultural Development- IFAD) की स्थापना संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के माध्यम से वर्ष 1977 में एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था के रूप में की गई थी, यह वर्ष 1974 के विश्व खाद्य सम्मेलन के प्रमुख परिणामों में से एक था।

इस सम्मेलन का आयोजन संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1970 के दशक के खाद्य संकटों के परिणामस्वरूप किया गया था, जब वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न अभाव व्यापक अकाल एवं कुपोषण का कारण बनता जा रहा था, मुख्य रूप से अफ्रीका के सहेलियन (Sahelian) देशों में। यह महसूस किया गया कि खाद्य असुरक्षा एवं अकाल के लिये उत्पादन से संबंधित समस्याएँ उत्तरदायी नहीं थीं बल्कि यह गरीबी से संबंधित संरचनात्मक समस्याएँ थी।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO)

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है जिसका अधिदेश अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों को निर्धारित कर सामाजिक न्याय तथा सभ्य कार्यों को बढ़ावा देना है।
यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों का निर्धारण करता है, कार्यस्थल पर अधिकारों को बढ़ावा देता है। यह सभ्य रोज़गार अवसरों, सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने के साथ ही कार्य से संबंधित मुद्दों पर सुदृढ़ संवाद को प्रोत्साहित करता है।
यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है जिसकी स्थापना वर्ष 1919 में वर्साय की संधि द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में की गई थी।
उद्योगों में कार्य के घंटे, बेरोज़गारी, मातृत्व सुरक्षा, महिलाओं के लिये रात्रिकालीन कार्य, न्यूनतम आयु और उद्योगों में युवा व्यक्तियों के लिये रात्रिकालीन कार्य से संबंधित 9 अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलनों एवं 10 सिफारिशों को दो वर्ष से कम समय (वर्ष 1922 तक) में अपनाया गया था।
संयुक्त राष्ट्र समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने से वर्ष 1946 में ILO संयुक्त राष्ट्र की प्रथम विशिष्ट एजेंसी बन गई।
श्रमिकों को सभ्य कार्य एवं न्याय हेतु कार्य करने के लिये संगठन को वर्ष 1969 में इसकी 50वीं वर्षगाँठ पर नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
वर्ष 1980 में ILO ने सॉलिडैरिटी संगठन की वैधता को कन्वेंशन संख्या 87 जिसे पोलैंड ने वर्ष 1957 में अनुमोदित किया था, के आधार पर पूर्ण समर्थन देकर पोलैंड को तानाशाही से मुक्ति दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
यह इस बात पर बल देता है कि कार्य का भविष्य पूर्व निर्धारित नहीं है, सभी के लिये सभ्य कार्य (Decent work) संभव है, लेकिन समाज को इसके लिये कार्य करना होगा। ILO ने वर्ष 2019 में अपनी स्थापना की शताब्दी के अवसर पर इसकी पहल के हिस्से के रूप में भविष्य के कार्य पर वैश्विक आयोग की स्थापना की।
इसका काम भविष्य के कार्यों की गहराई से जाँच करना है ताकि 21वीं सदी में सामाजिक न्याय के वितरण के लिये विश्लेषणात्मक आधार प्रदान किया जा सके।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् ब्रेटन वुड्स, न्यू हैम्पशायर, संयुक्त राज्य अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन (1944, जिसे ब्रेटन वुड्स सम्मेलन भी कहा जाता है) अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय व्यवस्था को विनियमित करने के लिये आयोजित किया गया था।
इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1945 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) की नींव रखी गई।
विश्व बैंक

संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन (1944, जिसे ब्रेटन वुड्स सम्मेलन भी कहा जाता है) द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय व्यवस्था को विनियमित करने के लिये आयोजित किया गया था। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1945 में अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (International Bank for Reconstruction and Development – IBRD) की नींव रखी गई। IBRD, विश्व बैंक की संस्थापक संस्था है।

अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO)

अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (International Maritime Organization- IMO) संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय मानक-निर्धारण प्राधिकरण है जो मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग की सुरक्षा में सुधार करने और जहाज़ों द्वारा होने वाले प्रदूषण को रोकने हेतु उत्तरदायी है।

अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संगठन (ITU)

अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संगठन (International Telecommunication Union – ITU) संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष एजेंसी है जो सूचना एवं संचार तकनीकों (Information and Communication Technologies- ICT) से संबंधित मुद्दों के प्रति ज़िम्मेदार है। यह संयुक्त राष्ट्र की सभी विशिष्ट एजेंसियों में सबसे पुरानी है।
इसकी स्थापना वर्ष 1865 में की गई थी और यह जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है। यह सरकारों (सदस्य राष्ट्रों) एवं निजी क्षेत्र (सदस्य, सहयोगी एवं शैक्षणिक समुदाय) के मध्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सिद्धांत पर कार्य करता है।
ITU प्रमुख वैश्विक मंच है जिसके माध्यम से विभिन्न पक्ष ICT उद्योग के भविष्य को प्रभावित करने वाले मुद्दों की एक विस्तृत शृंखला पर आम सहमति के साथ काम करते हैं।
यह वैश्विक रेडियो स्पेक्ट्रम एवं उपग्रह कक्षाएँ आवंटित करता है, तकनीकी मानक विकसित करता है जो निर्बाध रूप से नेटवर्क तथा प्रौद्योगिकियों की परस्पर संबद्धता सुनिश्चित करता है और संपूर्ण विश्व में वंचित समुदायों की ICT तक पहुँच में सुधार करने का प्रयास करता है।

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO)

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) की स्थापना वर्ष 1945 में स्थायी शांति के माध्यम से “मानव जाति की बौद्धिक व नैतिक एकजुटता” को विकसित करने के लिये की गई थी। यह पेरिस (फ्राँस) में स्थित है।
इस भावना में यूनेस्को लोगों को घृणा एवं असहिष्णुता से मुक्त वैश्विक नागरिक के रूप में जीने में सहायता करने के लिये शैक्षिक युक्तियाँ विकसित करता है।
सांस्कृतिक विरासत एवं सभी संस्कृतियों की समान गरिमा को बढ़ावा देकर यूनेस्को राष्ट्रों के मध्य संबंधों को मज़बूत करता है।

संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO)

संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (United Nations Industrial Development Organization- UNIDO) गरीबी को कम करने, समावेशी वैश्वीकरण एवं पर्यावरणीय स्थिरता के लिये औद्योगिक विकास को बढ़ावा देता है।

WHO

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) स्वास्थ्य हेतु संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी है।
इसकी स्थापना वर्ष 1948 में की गई थी, इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
यह एक अंतर-सरकारी संगठन है और अपने सदस्य राष्ट्रों के साथ मिलकर सामान्यतः स्वास्थ्य मंत्रालयों के माध्यम से कार्य करता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन निम्नलिखित के प्रति उत्तरदायी है:
वैश्विक स्वास्थ्य मामलों का नेतृत्व करना।
स्वास्थ्य अनुसंधान एजेंडा को आकार देना।
मानदंड एवं मानक स्थापित करना।
साक्ष्य-आधारित नीति विकल्प प्रदान करना।
देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करना।
स्वास्थ्य रुझानों की निगरानी एवं आकलन करना।

संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD)

संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) विकासशील देशों को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लाभों का निष्पक्ष एवं प्रभावी रूप से उपयोग करने में सहायता करता है। यह व्यापार, निवेश, वित्त व प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा समावेशी एवं सतत् विकास में मदद करता है।

संयुक्‍त राष्‍ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (UNODC)

संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime- UNODC) अवैध मादक पदार्थों तथा अंतर्राष्ट्रीय अपराध के खिलाफ वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ता है।
इसकी स्थापना वर्ष 1997 में संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ नियंत्रण कार्यक्रम एवं अंतर्राष्ट्रीय अपराध निवारण केंद्र के मध्य विलय के माध्यम से हुई थी।
UNODC अवैध मादक पदार्थ, अपराध एवं आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में सदस्य राष्ट्रों की सहायता करने के लिये अधिदेशित है।

संयुक्‍त राष्‍ट्र शरणार्थी उच्‍चायुक्‍त कार्यालय (UNHCR)

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय (United Nations High Commissioner for Refugees- UNHCR) वर्ष 1950 में इस उद्देश्य से स्थापित किया गया था, कि द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् उन लाखों यूरोपीय लोग जो अपने घर खो चुके थे अथवा पलायन कर चुके थे, की मदद की जा सके।
वर्ष 1954 में UNHCR ने यूरोप में अपने उत्कृष्ट कार्यों हेतु नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त किया।
21वीं सदी की शुरुआत में अफ्रीका, मध्य-पूर्व एवं एशिया में प्रमुख शरणार्थी संकटों में UNHCR द्वारा सहायता प्रदान की गई।
यह अपनी विशेषज्ञता का उपयोग आंतरिक संघर्षों के कारण विस्थापित लोगों की मदद करने के लिये करता है एवं राष्ट्र विहीन लोगों की सहायता करने हेतु अपनी भूमिका का विस्तार करता है।

ईएससीएपी

संयुक्त राष्ट्र एशिया-प्रशांत आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (Economic and Social Commission for Asia and the Pacific- ESCAP) क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र का मुख्य आर्थिक तथा सामाजिक विकास केंद्र है, जिसका मुख्यालय वर्ष 1947 में बैंकॉक (थाईलैंड) में बनाया गया।
यह अपने संयोजक प्राधिकरण, आर्थिक एवं सामाजिक विश्लेषण, नियामक मानक-निर्धारण तथा तकनीकी सहायता के माध्यम से क्षेत्र की विकास आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के लिये कार्य करता है।

विश्व के लिये संयुक्त राष्ट्र का योगदान

शांति एवं सुरक्षा
शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना: पिछले छह दशकों में विश्व में संकटग्रस्त स्थलों पर शांति एवं पर्यवेक्षक मिशन भेजकर, संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापित करने में सक्षम रहा है, जिससे कई देशों को संघर्ष से उबरने में सहायता प्राप्त हुई है।
नाभिकीय हथियारों के प्रसार को रोकना: पाँच दशकों से भी अधिक समय से, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency- IAEA) ने विश्व के नाभिकीय निरीक्षक के रूप में कार्य किया है। IAEA विशेषज्ञ यह सत्यापित करने के लिये कार्य करते हैं कि सुरक्षित नाभिकीय पदार्थों का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जा रहा है। एजेंसी ने अब तक 180 से अधिक राष्ट्रों के साथ सुरक्षा समझौते किये हैं।
निरस्त्रीकरण का समर्थन: संयुक्त राष्ट्र की संधियाँ निरस्त्रीकरण के प्रयासों का कानूनी आधार हैं:
रासायनिक हथियार कन्वेंशन-1997, यह 190 राष्ट्रों द्वारा अनुमोदित है।
माइन-बैन कन्वेंशन-1997-162 राष्ट्रों द्वारा अनुमोदित है।
शस्त्र व्यापार संधि -2014, 69 राष्ट्रों द्वारा अनुमोदित है।
स्थानीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापकों द्वारा अक्सर युद्धरत पक्षों के मध्य निरस्त्रीकरण समझौते को लागू करने के लिये कार्य किया जाता है।
नरसंहार को रोकना: किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को नष्ट करने के इरादे से किये गए नरसंहार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र ने प्रथम संधि स्थापित की।
नरसंहार कन्वेंशन 1948 का 146 राष्ट्रों द्वारा अनुमोदन किया गया है, जो युद्ध एवं शांति अवस्था में नरसंहार को रोकने तथा नरसंहार के लिये दंडित करने हेतु प्रतिबद्ध है। यूगोस्लाविया एवं रवांडा (Yugoslavia and Rwanda) के लिये संयुक्त राष्ट्र अधिकरण, साथ ही कंबोडिया में संयुक्त राष्ट्र समर्थित न्यायालय ने इस तथ्य पर नरसंहार अपराधियों को चेतावनी दी कि ऐसे अपराधों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
यूनाइटिंग फॉर पीस” प्रस्ताव: संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 377 (वी) को शांति प्रस्ताव के लिये एकजुट होने के रूप में जाना जाता है, जिसे वर्ष 1950 में अपनाया गया था।
प्रस्ताव का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा खंड A है जिसमें कहा गया है कि जहाँ स्थायी सदस्यों की एकमत की कमी के कारण सुरक्षा परिषद , अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के रखरखाव के लिये अपनी प्राथमिक ज़िम्मेदारी का प्रयोग करने में विफल रहता है, महासभा इस मामले को स्वयं अपने अंतर्गत ले लेगी।
उत्पत्ति: संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अक्तूबर 1950 में कोरियाई युद्ध के दौरान सोवियत वीटो को आगे बढ़ाने के एक साधन के रूप में शांति प्रस्ताव हेतु एकजुट होना शुरू किया गया।

आर्थिक विकास
विकास को बढ़ावा देना: वर्ष 2000 के बाद से संपूर्ण विश्व में जीवन स्तर एवं मानव कौशल व क्षमता को बढ़ावा देने हेतु सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों द्वारा नेतृत्त्व प्रदान किया गया है।
गरीबी कम करने, सुशासन को बढ़ावा देने, संकटों के समाधान एवं पर्यावरण संरक्षण के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा (UN Development Programme- UNDP) समर्थित 4,800 से अधिक परियोजनाएँ हैं।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) 150 से अधिक देशों में मुख्य रूप से बाल संरक्षण, टीकाकरण, लड़कियों की शिक्षा एवं आपातकालीन सहायता के क्षेत्र में कार्य करता है।
व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UN Conference on Trade and Development- UNCTAD) विकासशील देशों को व्यापार अवसरों का अधिकतम लाभ अर्जित करने में सहायता करता है।
विश्व बैंक विकासशील देशों को ऋण एवं अनुदान प्रदान करता है तथा इसने वर्ष 1947 के बाद 170 से अधिक देशों में 12,000 से अधिक परियोजनाओं को पोषित किया है।
ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी को कम करना: कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (International Fund for Agricultural Development- IFAD) गरीब ग्रामीण लोगों को कम-ब्याज पर ऋण एवं अनुदान प्रदान करता है।
अफ्रीकी विकास पर ध्यान केंद्रित करना: अफ्रीका संयुक्त राष्ट्र के लिये अभी भी उच्च प्राथमिकता पर बना हुआ है। अफ्रीका को विकास के लिये संयुक्त राष्ट्र तंत्र से 36 प्रतिशत व्यय प्राप्त होता है, जो विश्व के सभी क्षेत्रों में सबसे अधिक है। अफ्रीका के लाभ के लिये सभी संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के विशेष कार्यक्रम हैं।
महिला कल्याण को बढ़ावा देना: यूएन वीमेन/वुमन (UN Women) लैंगिक समानता एवं महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये समर्पित संयुक्त राष्ट्र संगठन है।
भुखमरी से निपटना: संयुक्त राष्ट्र का खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) भुखमरी को समाप्त करने के लिये प्रयासरत है। FAO विकासशील देशों को कृषि, वानिकी एवं मत्स्य पालन कार्यों को आधुनिक बनाने तथा उसमें सुधार लाने में सहायता करता है ताकि पोषण में सुधार व प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जा सके।
बाल कल्याण हेतु प्रतिबद्धता: यूनिसेफ ने सशस्त्र संघर्ष से प्रभावित बच्चों को टीके लगवाने एवं अन्य आवश्यक सहायता उपलब्ध कराने में अग्रणी भूमिका निभाई है। वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक स्तर पर बाल अधिकारों पर अभिसमय को अपनाया गया।
पर्यटन: विश्व पर्यटन संगठन उत्तरदायी, धारणीय एवं सार्वभौमिक रूप से सुलभ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी है।
पर्यटन के लिये वैश्विक आचार संहिता पर्यटन के नकारात्मक प्रभावों को कम करते हुए लाभों को अधिकतम करने का प्रयास करती है।
वैश्विक थिंक टैंक: संयुक्त राष्ट्र उन अनुसंधानों के मामले में सबसे अग्रणी है जो वैश्विक समस्याओं का समाधान करने हेतु प्रयासरत है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग वैश्विक जनसंख्या रुझानों पर सूचना एवं अनुसंधान का एक प्रमुख स्रोत है, जो जनसांख्यिकीय अनुमान प्रस्तुत करता है।
संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी प्रभाग वैश्विक सांख्यिकीय प्रणाली का केंद्र है, जो वैश्विक आर्थिक, जनसांख्यिकीय, सामाजिक, लैंगिक, पर्यावरण एवं ऊर्जा आँकड़ों का संकलन तथा प्रसार करता है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की वार्षिक मानव विकास रिपोर्ट प्रमुख विकास के मुद्दों, रुझानों एवं नीतियों के स्वतंत्र, अनुभवजन्य आधारभूत विश्लेषण प्रदान करती है, जिसमें मानव विकास सूचकांक भी शामिल है।
संयुक्त राष्ट्र विश्व आर्थिक एवं सामाजिक सर्वेक्षण, विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का विश्व आर्थिक दृष्टिकोण एवं अन्य अध्ययन नीति निर्माताओं को सुविज्ञ निर्णय लेने में सहायता करते हैं।
सामाजिक विकास
ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, वास्तुकला एवं प्राकृतिक स्थलों का संरक्षण: यूनेस्को ने प्राचीन स्मारकों और ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक स्थलों की रक्षा के लिये 137 देशों की सहायता की है।
इसने सांस्कृतिक संपत्तियों, सांस्कृतिक विविधता और उत्कृष्ट सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक स्थलों के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों की व्यवस्था की है। 1,000 से अधिक ऐसे स्थलों को असाधारण सार्वभौमिक मूल्य के विश्व विरासत स्थल के रूप में नामित किया गया है।
वैश्विक मुद्दों पर अग्रणी:

प्रथम संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सम्मेलन (स्टॉकहोम, 1972) ने हमारे ग्रह (पृथ्वी) को खतरों की आशंका विश्व जनमत को सतर्क करने में मदद की, जिससे सरकारों द्वारा तीव्रता के साथ कार्रवाई के चलते की गई।
प्रथम संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन (मेक्सिको सिटी, 1985) में महिलाओं के अधिकार, समानता एवं प्रगति जैसे मुद्दों को वैश्विक एजेंडे में रखा गया।
अन्य ऐतिहासिक आयोजनों में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार सम्मेलन (तेहरान, 1968), प्रथम विश्व जनसंख्या सम्मेलन (बुखारेस्ट, 1974) एवं प्रथम विश्व जलवायु सम्मेलन (जिनेवा, 1979) शामिल हैं।
इन आयोजनों ने संपूर्ण विश्व के विशेषज्ञों एवं नीति निर्धारकों के साथ-साथ कार्यकर्ताओं को एक साथ लाकर वैश्विक कार्रवाई को गति प्रदान की।
साथ ही नियमित अनुवर्ती सम्मेलनों ने इस गति को बनाए रखने में मदद की है।
मानवाधिकार
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अपनाया।
इसने राजनीतिक, नागरिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर दर्जनों कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौतों को लागू करने में सहायता की है।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार निकायों ने यातना, लापता होने, अवैध गिरफ्तारी एवं अन्य उल्लंघनों के मामलों पर विश्व का ध्यान केंद्रित किया है।
लोकतंत्र को बढ़ावा देना: संयुक्त राष्ट्र स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव में भाग लेने के लिये कई देशों के लोगों की सहायता करने के साथ ही विश्व भर में लोकतांत्रिक संस्थानों तथा उनके कार्यों को बढ़ावा देता है व मज़बूती प्रदान करता है।
1990 के दशक में संयुक्त राष्ट्र ने कंबोडिया, अल साल्वाडोर, दक्षिण अफ्रीका, मोजाम्बिक और तिमोर-लेस्ते में ऐतिहासिक चुनावों का आयोजन अथवा उसका अवलोकन किया।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने अफगानिस्तान, बुरुंडी, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इराक, नेपाल, सिएरा लियोन एवं सूडान में आयोजित चुनावों में महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान की है।
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को समाप्त करना: शस्त्र प्रतिबंध से लेकर विभिन्न प्रकार के उपायों को लागू करके, रंगभेद व्यवस्था के पतन में संयुक्त राष्ट्र एक प्रमुख कारक था।
वर्ष 1994 में आयोजित चुनाव जिसमें सभी दक्षिण अफ्रीकी लोगों को एक समान आधार पर भाग लेने की अनुमति दी गई थी, ने एक बहु-जातीय सरकार (Multiracial Government) की स्थापना का नेतृत्त्व किया।
महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देना: महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभावों के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन 1979 को 189 देशों द्वारा अनुमोदित किया गया, जिसने संपूर्ण विश्व में महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने में सहायता की है।
पर्यावरण
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, यह वैश्विक स्तर पर समाधान की मांग करती है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC), जो कि 2,000 प्रमुख जलवायु परिवर्तन वैज्ञानिकों को एक साथ लाता है, प्रत्येक पाँच या छह वर्षों में व्यापक वैज्ञानिक आकलन जारी करता है।
IPCC की स्थापना वर्ष 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) एवं विश्व मौसम विज्ञान संगठन के संयुक्त तत्वावधान में की गई थी, इसका उद्देश्य मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन जोखिम के प्रति समझ पैदा करने के लिये प्रासंगिक वैज्ञानिक, तकनीकी व सामाजिक-आर्थिक जानकारी का आकलन करना था।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारक उत्सर्जन को कम करने एवं देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल क्षमता प्राप्त करने में सहायता हेतु समझौतों के लिये आधार प्रदान करता है (UNFCCC-1992 एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधि है इसे वर्ष 1992 में रियो डी जेनेरो (ब्राज़ील) में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन में हस्ताक्षर कर अपनाया गया)।
वैश्विक पर्यावरण सुविधा जो 10 संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों को एक साथ लाती है, विकासशील देशों में परियोजनाओं को वित्तपोषण प्रदान करती है।
ओज़ोन परत का संरक्षण: UNEP एवं विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization- WMO) पृथ्वी की ओजोन परत को हुए नुकसान पर प्रकाश डालने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ओज़ोन परत संरक्षण के लिये वियना कन्वेंशन-1985 ने क्लोरोफ्लोरोकार्बन के उत्पादन में अंतर्राष्ट्रीय कटौती के लिये नियामक उपायों को अपनाने के लिये आवश्यक रूपरेखा प्रदान की। कन्वेंशन ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के लिये आधार प्रदान किया।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल-1987 एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय समझौता है, जिसमें पृथ्वी की ओज़ोन परत का संरक्षण के लिये क्लोरोफ्लोरोकार्बन (Chlorofluorocarbons- CFC) एवं हैलोन जैसे ओज़ोन अपक्षय पदार्थों (Ozone Depleting Substances- ODS) का उपयोग बंद करने की बात की गई है।
किगाली संशोधन (मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में) 2016: इसे संपूर्ण विश्व में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (Hydrofluorocarbons- HFC) के उत्पादन एवं खपत को कम करने के लिये अपनाया गया था।
हानिकारक रसायनों पर प्रतिबंध: स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम कन्वेंशन, 2001 जो कि अब तक बनाए गए कुछ सबसे खतरनाक रसायनों से विश्व को छुटकारा प्रदान करने के लिये प्रयासरत है।
अंतर्राष्ट्रीय कानून
युद्ध अपराधियों पर मुकदमा चलाना: युद्ध अपराधियों पर मुकदमा चलाने एवं दोष सिद्धिकरण द्वारा पूर्व में यूगोस्लाविया और रवांडा के लिये स्थापित संयुक्त राष्ट्र न्यायाधिकरणों ने नरसंहार व अंतर्राष्ट्रीय कानून के अन्य उल्लंघनों से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानवीय तथा अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक कानून का विस्तार करने में मदद की है।
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय एक स्वतंत्र स्थायी न्यायालय है जो गंभीर अंतर्राष्ट्रीय अपराधों- नरसंहार, मानवता के विरुद्ध अपराधों एवं युद्ध अपराधों के आरोपित व्यक्तियों की जाँच करता है तथा उन पर मुकदमा चलाता है- अगर राष्ट्रीय प्राधिकरण ऐसा करने को अनिच्छुक है अथवा असमर्थ है।
प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय विवादों को हल करने में सहायक: निर्णय एवं सलाह प्रदान करके, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice- ICJ) ने क्षेत्रीय विवादों, समुद्री सीमाओं, राजनयिक संबंधों, राज्य के उत्तरदायित्वों एवं सैन्य उपयोग से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय विवादों को निपटाने में मदद की है।
विश्व के महासागरों में स्थिरता एवं व्यवस्था:
समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन 1982, जिसने लगभग सार्वभौमिक स्वीकृति प्राप्त की है, महासागरों एवं समुद्रों में सभी गतिविधियों के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
इसमें विवाद निपटाने के लिये तंत्र भी शामिल है।
अंतर्राष्ट्रीय अपराध से निपटना: संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (UNODC) अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराधों से निपटने के लिये भ्रष्टाचार, मनी-लॉन्ड्रिंग, मादक पदार्थों की तस्करी और प्रवासियों की तस्करी के विरुद्ध कानूनी एवं तकनीकी सहायता प्रदान कर देशों एवं संगठनों के साथ काम करता है, साथ ही आपराधिक न्याय प्रणाली को मज़बूती प्रदान करता है।
इसने संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधियों की मध्यस्थता करने एवं उन्हें कार्यान्वित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन-2005 और अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन-2003।
यह दवा नियंत्रण पर संयुक्त राष्ट्र के तीन मुख्य कन्वेंशन्स के तहत अवैध दवाओं की आपूर्ति एवं मांग को कम करने के लिये कार्य करता है:
नारकोटिक ड्रग्स पर एकल कन्वेंशन-1961 (1972 में संशोधित)।
साइकोट्रोपिक पदार्थों पर कन्वेंशन-1971।
तथा नार्कोटिक ड्रग्स एवं साइकोट्रोपिक पदार्थों के अवैध व्यापार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन-1988।
रचनात्मकता एवं नवाचार को प्रोत्साहित करना: विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization- WIPO) बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण को बढ़ावा देता है एवं यह सुनिश्चित करता है कि सभी देश एक प्रभावी बौद्धिक संपदा प्रणाली का लाभ प्राप्त करें।
मानवीय मामले
शरणार्थियों की सहायता करना: उत्पीड़न, हिंसा एवं युद्ध के कारण पलायन करने वाले शरणार्थियों को संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त शरणार्थियों के लिये कार्यालय (UNHCR) से सहायता प्रदान की गई।
यदि परिस्थितियाँ अनुकूल रहती हैं तो UNHCR शरणार्थियों को उनके वास्तविक देशों को प्रत्यावर्तित करने में मदद कर, उनको शरण देने वाले देश में अथवा अन्य देशों में निर्वासित कर दीर्घकालिक या “स्थायी” समाधान हेतु प्रयासरत है।
शरणार्थियों, शरण चाहने वालों एवं आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों, अधिकांशतः महिलाओं व बच्चों को संयुक्त राष्ट्र से भोजन, आश्रय, चिकित्सा सहायता, शिक्षा व प्रत्यावर्तन सहायता प्राप्त हो रही है।
फिलिस्तीनी शरणार्थियों को सहायता: संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UN Relief and Works Agency- UNRWA) एक राहत व मानव विकास एजेंसी है जिसने शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक सेवाओं, माइक्रोफाइनेंस और आपातकालीन सहायता के साथ चार पीढ़ियों से फिलीस्तीनी शरणार्थियों की सहायता की है।
प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करना: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने लाखों लोगों को प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं के प्रभाव से निपटने में सहायता की है।
इसकी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली में हज़ारों सतह मॉनिटर के साथ ही उपग्रह भी शामिल हैं,
इसने मौसम संबंधी आपदाओं की अधिक सटीकता के साथ भविष्यवाणी को संभव किया है।
तेल फैलने व रासायनिक एवं परमाणु रिसाव के बारे में जानकारियाँ प्रदान की हैं तथा दीर्घकालीन सूखे की भविष्यवाणियाँ की हैं।
ज़रूरतमंदों को भोजन प्रदान करना: विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) संपूर्ण विश्व में भुखमरी से लड़ रहा है, आपातस्थिति में खाद्य सहायता प्रदान कर रहा है एवं पोषण में सुधार के लिये समुदायों के साथ कार्य कर रहा है।
स्वास्थ्य
प्रजनन एवं मातृ स्वास्थ्य को बढ़ावा देना: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) स्वैच्छिक परिवार नियोजन कार्यक्रमों के माध्यम से अपने बच्चों की संख्या एवं उनके मध्य अंतर पर निर्णय लेने के लिये व्यक्तियों के अधिकारों को बढ़ावा दे रहा है।
एचआईवी/एड्स पर प्रतिक्रिया: एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम (UNAIDS) महामारी के खिलाफ एक वैश्विक कार्रवाई का समन्वय करता है जो लगभग 35 मिलियन लोगों को प्रभावित करती है।
पोलियो को समाप्त करना: वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल के परिणामस्वरूप पोलियोमाइलाइटिस को तीनों देशों अफगानिस्तान, नाइजीरिया एवं पाकिस्तान से समाप्त कर दिया गया है।
चेचक उन्मूलन: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा 13 वर्ष के प्रयास के परिणामस्वरूप चेचक को वर्ष 1980 में आधिकारिक रूप से संपूर्ण विश्व से समाप्त कर दिया गया है।
उष्णकटिबंधीय रोगों से निपटना:
डब्लूएचओ कार्यक्रम – आंकोसर्कायसिस नियंत्रण अफ्रीकी कार्यक्रम ने 10 पश्चिम अफ्रीकी देशों में रिवर ब्लाइंडनेस (आंकोसर्कायसिस ) के स्तर को कम कर दिया, वहीं कृषि के लिये 25 मिलियन हेक्टेयर उपजाऊ भूमि प्रदान की।
गिनिया-कृमि रोग उन्मूलन के कगार पर है।
सिस्टोसोमियासिस एवं नींद की बीमारी अब नियंत्रण में है।
महामारियों के फैलाव को रोकना।
अन्य प्रमुख बीमारियों जिनके लिये डब्ल्यूएचओ वैश्विक प्रतिक्रिया का नेतृत्व कर रहा है, उनमें इबोला, मैनिंजाइटिस, पीत ज्वर, हैजा एवं इन्फ्लूएंज़ा, एवियन इन्फ्लूएंज़ा सहित अन्य बीमरियाँ शामिल हैं।

संयुक्त राष्ट्र एवं भारत

भारत को संयुक्त राष्ट्र का योगदान

भारत में काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ, कार्यालय, कार्यक्रम एवं कोष विश्व में कहीं भी सबसे बड़े संयुक्त राष्ट्र क्षेत्र नेटवर्क में से एक है।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये एशियाई एवं प्रशांत केंद्र (APCTT)

वर्ष 1977 में नई दिल्ली में स्थापित APCTT, एशिया एवं प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (UNESCAP) संपूर्ण एशिया-प्रशांत क्षेत्र की भौगोलिकता पर फोकस करने वाला एक क्षेत्रीय संस्थान है।
केंद्र ने गतिविधि के तीन विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है: सूचना प्रौद्योगिकी, तकनीकी हस्तांतरण एवं नवाचार प्रबंधन।

खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO):

वर्ष 1948 में जब FAO ने भारत में अपना परिचालन शुरू किया, तो इसकी प्राथमिकता तकनीकी आदानों एवं नीतिगत विकास द्वारा समर्थन के माध्यम से भारत के खाद्य व कृषि क्षेत्रों को परिवर्तित करना था।
इन वर्षों में FAO के योगदान में भोजन, पोषण, आजीविका तक पहुँच, ग्रामीण विकास एवं धारणीय कृषि जैसे मुद्दों में वृद्धि हुई है।
सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goal- SDG) के साथ भारत में FAO का अधिकांश ध्यान धारणीय कृषि कार्यों पर होगा।

कृषि विकास हेतु अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD):

IFAD एवं भारत सरकार ने स्मॉल होल्डिंग-एग्रीकल्चर के व्यवसायीकरण व निवेश द्वारा बाज़ार के अवसरों से आय बढ़ाने के लिए छोटे किसानों की क्षमता का निर्माण कर महत्त्वर्ण परिणाम प्राप्त किये हैं।
IFAD समर्थित परियोजनाओं ने महिलाओं को वित्तीय सेवाओं तक पहुँच प्रदान की है, जैसे कि महिलाओं के स्वयं-सहायता समूहों को वाणिज्यिक बैंकों से जोड़ना।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO):

भारत में पहला ILO कार्यालय वर्ष 1928 में शुरू हुआ। भारत द्वारा 43 ILO कन्वेंशन एवं 1 प्रोटोकॉल की पुष्टि की गई है।

प्रवासन हेतु अंतर्राष्ट्रीय संगठन (IOM)
प्रवासन हेतु अंतर्राष्ट्रीय संगठन (International Organization for Migration- IOM) ने उन भारतीय नागरिकों की सहायता की, जो फारस की खाड़ी युद्ध (1990) में विस्थापित हज़ारों लोगों में से थे।
वर्ष 2001 में गुजरात भूकंप के दौरान IOM की त्वरित एवं प्रभावी सहायता ने मानवीय एजेंसी के रूप में भारत में IOM संचालन की नींव रखी।
वर्ष 2007 में भारत को श्रमिकों के आदान-प्रदान तथा श्रमिकों द्वारा प्रेषित धन प्राप्त करने वाले देश के रूप में पहचान कर IOM ने प्रवासियों के साथ सुरक्षित व कानूनी प्रवासन पर कार्य करना शुरू किया, साथ ही अनियमित प्रवासन से संबंधित जोखिमों के बारे में चेतावनी दी।

यूनेस्को – महात्मा गांधी शांति एवं सतत् विकास हेतु शिक्षण संस्थान (MGIEP):

महात्मा गांधी शांति एवं सतत् विकास हेतु शिक्षण संस्थान (Mahatma Gandhi Institute of Education for Peace and Sustainable Development- MGIEP) यूनेस्को का एक अभिन्न अंग है, जिसे वर्ष 2012 में नई दिल्ली में भारत सरकार के सहयोग से स्थापित किया गया था।
संस्थान का वैश्विक अधिदेश नवीन शिक्षण एवं अधिगम तरीकों को विकसित करके शिक्षा नीतियों व कार्यों को परिवर्तित करना है।
यह सतत विकास लक्ष्य (SDG) 4.7 के लिए कार्य करता है, जिसका उद्देश्य है- “संपूर्ण विश्व में शांतिपूर्ण और टिकाऊ समाज के निर्माण के लिए शिक्षा”।
वर्ष 2016-17 में यूनेस्को एशिया एंड पैसिफिक रीजनल ब्यूरो फॉर एजुकेशन के साथ UNESCO-MGIEP द्वारा शिक्षा हेतु एक परियोजना ‘रीथिंकिंग स्कूलिंग’ शुरू की गई थी।
MGIEP द्वारा SDGs (4.7) की पहली समीक्षा 21वीं सदी के लिये रिथिंकिंग स्कूलिंग में जारी की गई थी।

लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण हेतु संयुक्त राष्ट्र इकाई (UN-Women):

भारत में यूएन वुमेन के पाँच प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं:
महिलाओं एवं बालिकाओं के विरुद्ध हिंसा को समाप्त करना।
महिलाओं के नेतृत्त्व एवं भागीदारी का विस्तार।
लैंगिक समानता को राष्ट्रीय विकास योजना एवं बजट के केंद्र में रखना।
महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ाना।
वैश्विक शांति-स्थापकों एवं वार्ताकारों के रूप में महिलाओं को शामिल करना।
यूएन वुमेन राजनीति एवं निर्णय लेने में महिलाओं की अधिक भागीदारी की हिमायत करता है, एवं नीति निकायों जैसे नीति आयोग के साथ कार्य करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नीतियों व बजट महिलाओं की आवश्यकता का ध्यान रखा जाता है।
एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम (UNAIDS): इसका मिशन नए एचआईवी संक्रमणों को रोकने में सहायता करना है, एचआईवी पीड़ित लोगों की सहायता करना तथा महामारी के प्रभाव को कम करना है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP):

1950 एवं 1960 के दशक में UNDP ने अंतरिक्ष केंद्रों एवं नाभिकीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं सहित प्रमुख राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थानों की स्थापना में सहायता की।
पिछले एक दशक में UNDP ने प्राकृतिक आपदाओं एवं जलवायु परिवर्तन के जोखिमों तथा अल्पसंख्यकों द्वारा विभिन्न प्रकार के भेदभावों का सामना करने के लिये क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया है।

एशिया एवं प्रशांत हेतु संयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक आयोग (ESCAP):

दिसंबर 2011 में उप-क्षेत्र में 10 देशों को सेवाएँ प्रदान करने हेतु नई दिल्ली में ESCAP के एक नए दक्षिण एवं दक्षिण-पश्चिम एशिया कार्यालय की शुरुआत की गई थी।
चूंकि यह विकास की सीढ़ी है तथा भारत इस उद्देश्य लिये ESCAP के प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हुए अपने अनुभव एवं क्षमताओं को इस क्षेत्र में तथा इस क्षेत्र के अतिरिक्त भी अन्य देशों के साथ साझा कर रहा है।

यूनेस्को

भारत में यूनेस्को ने कई प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों को तकनीकी सहायता प्रदान की है।
अपने विश्व विरासत कार्यक्रम के हिस्से के रूप में इसने भारत में 27 सांस्कृतिक विरासत स्थलों को मान्यता दी है, जैसे कि ताजमहल एवं मध्य प्रदेश में भीमबेटका के रॉक शेल्टर।
यूनेस्को ने भारत में सामुदायिक रेडियो के विकास में एक अग्रणी भूमिका निभाई है, इसने वर्ष 2002 की सामुदायिक रेडियो नीति तैयार करने में सहायता की थी।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA)

वर्तमान में UNFPA भारत के मध्य-आय की स्थिति को देखते हुए नीति विकास पर अधिक बल दे रहा है।
यह वृद्ध होती आबादी के प्रति जनसांख्यिकीय बदलाव एवं अवसरों का लाभ उठाने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाता है तथा पॉपुलेशन एजिंग की चुनौतियों को संबोधित करता है।

मानव अधिवास पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (UN-Habitat)

मानव अधिवास पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (UN-Habitat) सभी के लिये पर्याप्त आश्रय प्रदान करने के लक्ष्य के साथ सामाजिक एवं पर्यावरणीय रूप से धारणीय कस्बों व शहरों को बढ़ावा देता है।
भारत में यूएन-हैबिटेट की पहल में शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता कवरेज पर सरकारी परियोजनाओं का समर्थन, शहरी जल आपूर्ति एवं पर्यावरण में सुधार और सामाजिक अपवर्जन से संघर्ष करने के लिये महिलाओं के समूह एवं युवा समूहों को सशक्त बनाने वाली सहायक संस्थाओं का समर्थन करना शामिल है।
यूएन-हैबिटेट “विश्व शहर रिपोर्ट 2016”
जनगणना 2011 के अनुसार, 377 मिलियन भारतीय जो कुल जनसंख्या का 31.1% हैं, शहरी क्षेत्रों में रहते थे।
यूएन-हैबिटेट-न्यू अर्बन एजेंडा (NUA)- 2017 सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के लक्ष्य-11 को संबोधित करता है, इसका लक्ष्य “शहरों एवं मानव अधिवास को समावेशी, सुरक्षित, क्षमतावान एवं धारणीय बनाना है।”
भारत ने अटल शहरी परिवर्तन एवं जीर्णोद्धार मिशन (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation- Amrut), स्मार्ट सिटीज, हृदय (Hriday), (नेशनल हेरिटेज सिटी डेवलपमेंट एंड ऑगमेंटेशन योजना) और यूएन-हैबिटेट-एनयूए के लक्ष्यों के प्रति प्रमुख रूप से संबद्ध स्वच्छ भारत मिशन लॉन्च किये हैं ।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF)

वर्ष 1954 में यूनिसेफ ने भारत सरकार के साथ आरे एवं आनंद दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्रों को वित्तपोषित करने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। इसके बदले में क्षेत्र के ज़रूरतमंद बच्चों को मुफ्त अथवा रियायती दरों पर दूध उपलब्ध कराया जाना था।
एक दशक के भीतर भारत में यूनिसेफ द्वारा सहायता प्राप्त तेरह दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र हो गए।
आज भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया है।
पोलियो अभियान-2012: सरकार, यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, रोटरी इंटरनेशनल एवं रोग नियंत्रण व रोकथाम केंद्रों की साझेदारी में पाँच वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों को पोलियो का टीका लगाने के संबंध में सार्वभौमिक जागरूकता में योगदान दिया।
इन प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्ष 2014 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया गया।
यह मातृ एवं शिशु पोषण पर राष्ट्रव्यापी अभियानों तथा नवजात मृत्यु दर में कमी लाने और वर्ष 2030 तक नवजात मृत्यु दर को इकाई अंक तक कम करने हेतु भी सहायता कर रहा है।

संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO):

धारणीय शहरों पर एकीकृत दृष्टिकोण कार्यक्रम-2017 वैश्विक पर्यावरण सुविधा द्वारा वित्तपोषित एवं विश्व बैंक और UNIDO द्वारा सह-कार्यान्वित है।

विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP)

WFP भारत की सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली की दक्षता, उत्तरदायित्व एवं पारदर्शिता में सुधार के लिये कार्य कर रहा है, जिसके तहत संपूर्ण देश में लगभग 800 मिलियन गरीब लोगों को गेहूँ, चावल, चीनी एवं केरोसिन की आपूर्ति की जाती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)

भारत 12 जनवरी, 1948 को WHO का पक्षकार बन गया।
देशव्यापी उपस्थिति के साथ WHO कंट्री ऑफिस फॉर इंडिया का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है।
इसने देश में अस्पताल-आधारित से समुदाय-आधारित स्वास्थ्य सेवाओं के परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्यकर्मियों एवं प्राथमिक देखभाल पर ध्यान केंद्रित करने में वृद्धि हुई है।
WHO देश सहयोग रणनीति- भारत (2012-2017) को संयुक्त रूप से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा WHO कंट्री ऑफिस फॉर इंडिया द्वारा विकसित किया गया है।

शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNHCR)

भारत में शरणार्थियों को शरण देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
भारत को वर्ष 1969-1975 से UNHCR का समर्थन रहा है जब इसने तिब्बती शरणार्थियों के साथ-साथ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के शरणार्थियों को सहायता प्रदान की।
UNHCR का शहरी परिचालन कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है साथ ही यह लघु स्तर पर चेन्नई में भी कार्य करता है जो तमिलनाडु में श्रीलंकाई शरणार्थियों को स्वेच्छा से श्रीलंका वापस लौटने में सहायता करता है।
शरणार्थियों के लिये एक राष्ट्रीय कानूनी ढाँचे की अनुपस्थिति में UNHCR कार्यालय में आने वाले इच्छुक शरणार्थियों के लिये अधिदेश के तहत शरणार्थी स्थिति का निर्धारण करता है।
UNHCR द्वारा मान्यता प्राप्त शरणार्थियों के दो सबसे बड़े समूह अफग़ानिस्तान एवं म्याँमार के नागरिक हैं, लेकिन सोमालिया एवं इराक जैसे देशों के लोगों ने भी कार्यालय से सहायता मांगी है।

भारत एवं पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (UNMOGIP)

वर्ष 1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा प्रदान की गई विभाजन की योजना के तहत कश्मीर भारत अथवा पाकिस्तान से स्वतंत्र था। भारत में इसका विलय दोनों देशों के मध्य विवाद का विषय बन गया और उस वर्ष के अंत में दोनों के मध्य युद्ध शुरू हो गया।
जनवरी 1948 में सुरक्षा परिषद ने विवाद की जाँच करने और मध्यस्थता करने के लिये भारत एवं पाकिस्तान हेतु संयुक्त राष्ट्र आयोग (UNCIP) की स्थापना करते हुए इस प्रस्ताव 39 को अपनाया।
निहत्थे सैन्य पर्यवेक्षकों की पहली टीम, जिसने अंततः भारत एवं पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (United Nations Military Observer Group in India and Pakistan- UNMOGIP) की नींव रखी, जनवरी 1949 में मिशन क्षेत्र में निरीक्षण करने के लिये तथा जम्मू एवं कश्मीर राज्य में भारत और पाकिस्तान के मध्य युद्ध विराम के पर्यवेक्षण हेतु UNCIP के सैन्य सलाहकार की सहायता के लिये पहुँची।
वर्ष 1971 के अंत में भारत और पाकिस्तान के मध्य पुनः युद्ध स्थितियाँ उत्पन्न हो गईं। UNMOGIP ने पूर्वी पाकिस्तान की सीमाओं पर कार्य करना शुरू किया और यह स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित था, जो उस क्षेत्र में विकसित हुआ था तथा जिसके परिणामस्वरूप अंततः बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
UNMOGIP पर सुरक्षा परिषद के महासचिव की अंतिम रिपोर्ट वर्ष 1972 में प्रकाशित की गई थी।
वर्ष 1972 के बाद से भारत ने जम्मू एवं कश्मीर राज्य के संबंध में पाकिस्तान के साथ अपने द्विपक्षीय मुद्दों पर तृतीय पक्ष को मान्यता न देने की नीति अपनाई है।
पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों ने UNMOGIP के साथ कथित संघर्षविराम उल्लंघन की शिकायतें दर्ज कराना जारी रखा है।
भारत के सैन्य अधिकारियों ने जनवरी 1972 से कोई शिकायत दर्ज नहीं की है, यह नियंत्रण रेखा के भारतीय प्रशासित क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षकों की गतिविधियों को सीमित करता है, हालाँकि उनका UNMOGIP को आवश्यक सुरक्षा, परिवहन एवं अन्य सेवाएँ प्रदान करना जारी है।

मादक पदार्थों एवं अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC)

UNODC ने पिछले 25 वर्षों में ड्रग तस्करी को दूर करने के लिये लगातार विकसित होते दवा बाज़ार के संदर्भ में काम किया है, जिसमें ड्रग्स एवं साइकोएक्टिव पदार्थों की बढ़ती संख्या शामिल है।
यह मानव तस्करी से निपटने के लिये सरकार के साथ भी कार्य करता है और उन लोगों की रोकथाम, उपचार एवं देखभाल करता है जो ड्रग्स का उपयोग करते हैं एवं एचआईवी संक्रमित हैं।
व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD)

देश के निवेश संवर्द्धन निकाय इन्वेस्ट इंडिया ने सतत् विकास- 2018 में निवेश को बढ़ावा देने में उत्कृष्टता के लिये संयुक्त राष्ट्र पुरस्कार जीता है।
वर्ष 2002 से यह पुरस्कार UNCTAD द्वारा इसके निवेश प्रोत्साहन एवं सुगमता के हिस्से के रूप में प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है।
विकासशील विश्व के लिये भारत की लगातार मज़बूत आवाज़ ने इसे आर्थिक सुधारों की बहुलता वाले UNCTAD के साथ प्रमुख बना दिया है।
भारत का संयुक्त राष्ट्र में योगदान

भारत लीग ऑफ़ नेशंस के मूल सदस्यों में से एक था। वर्साय -1919 की संधि के एक हस्ताक्षरकर्त्ता के रूप में भारत को राष्ट्र संघ में स्वत: प्रवेश मिल गया।
भारत का प्रतिनिधित्व राज्य सचिव एडविन सैमुअल मोंटेगु, बीकानेर के महाराजा सर गंगा सिंह; सत्येंद्र प्रसन्न सिन्हा और भारत के संसदीय अवर सचिव ने किया था।
भारत वर्ष 1944 में वाशिंगटन, डी.सी. में संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले संयुक्त राष्ट्र के मूल सदस्यों में से था। यह घोषणा संयुक्त राष्ट्र का आधार बन गई, जिस पर वर्ष 1945 में 50 देशों द्वारा हस्ताक्षर कर संयुक्त राष्ट्र चार्टर में औपचारिक रूप दिया गया था।
वर्ष 1946 तक भारत ने उपनिवेशवाद, रंगभेद एवं नस्लीय भेदभाव से संबंधित मुद्दों को उठाना शुरू कर दिया था।
भारत दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद एवं नस्लीय भेदभाव (दक्षिण अफ्रीकी संघ में भारतीयों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार) के सबसे मुखर आलोचकों में से था और वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को उठाने वाला प्रथम देश था।
भारत ने मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा-1948 के प्रारूपण में सक्रिय रूप से भाग लिया।
संयुक्त राष्ट्र के साथ भारत का अनुभव हमेशा सकारात्मक नहीं रहा। कश्मीर मुद्दे पर नेहरू का संयुक्त राष्ट्र में विश्वास एवं संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों का पालन करना महँगा साबित हुआ जो तत्कालीन पाकिस्तान समर्थक पक्षपातपूर्ण शक्तियों से परिपूर्ण था।
विजया लक्ष्मी पंडित को वर्ष 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रथम महिला अध्यक्ष चुना गया।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement- NAM) एवं जी-77 के संस्थापक सदस्य के रूप में भारत की स्थिति संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर विकासशील देशों के मुद्दे व उनकी आकांक्षाओं के प्रमुख अधिवक्ता के रूप में मज़बूत हुई तथा इसने अधिक न्यायसंगत अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण किया।
इसमें चीन के साथ युद्ध (1962), पाकिस्तान के साथ दो युद्ध (1965, 1971) शामिल थे जिसके कारण राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक विकास में कमी, खाद्य संकट एवं निकट-अकाल की स्थितियाँ उत्पन्न हुई।
इसकी वजह से संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका में कमी आई, जो उसकी छवि एवं नेहरू के बाद के राजनीतिक नेतृत्व द्वारा संयुक्त राष्ट्र में केवल महत्त्वपूर्ण भारतीय हितों पर बोलने के निर्णय के मिले-जुले परिणामों के कारण हुआ।
भारत अब तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सात कार्यकालों (कुल 14 वर्षों) का सदस्य रहा है, भारत का आठवाँ कार्यकाल वर्ष 2021–22 है।
भारत G4 (ब्राज़ील, जर्मनी, भारत एवं जापान) का सदस्य है, यह राष्ट्रों का एक समूह है जो सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट (Permanent Seat) प्राप्त करने के लिये एक-दूसरे का समर्थन करते हैं तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की वकालत करते हैं।
रूसी संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम एवं फ्राँस भारत तथा अन्य जी 4 देशों को स्थायी सीट प्राप्त करने में समर्थन करते हैं।
भारत G-77 का भी सदस्य है।

ग्रुप ऑफ 77 (G-77) की स्थापना 15 जून, 1964 को “सतत् विकासशील देशों की संयुक्त घोषणा” पर सतत् विकासशील देशों के हस्ताक्षर द्वारा की गई थी।
यह अपने सदस्यों के सामूहिक आर्थिक हितों को बढ़ावा देने एवं संयुक्त राष्ट्र में एक संयुक्त समझौता क्षमता बढ़ाने के लिये बनाया गया है।
इसके ऐतिहासिक महत्त्व के परिणामस्वरूप 130 से अधिक देशों के इसमें शामिल होने से समूह में वृद्धि के बावजूद जी -77 नाम को बरकरार रखा गया है।
संयुक्त राष्ट्र का शांति मिशन: नागरिकों की रक्षा करने तथा देशों को संघर्ष के बजाय शांति स्थापना में मदद कर भारत ने शांति स्थापित करने में योगदान दिया है।

वर्तमान में (2019) भारत संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में 6593 सैन्यकर्मियों की तैनाती (लेबनान, कांगो, सूडान एवं दक्षिण सूडान, गोलान हाइट्स, आइवरी कोस्ट, हैती, लाइबेरिया) के साथ तीसरा सबसे बड़ा सैन्य योगदानकर्त्ता है।
वर्ष 1948 के बाद से संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन में सैन्य सहायता भेजने वाले देशों में भारत ने सबसे अधिक सैन्य क्षति (लगभग 3,800 सैन्यकर्मियों में से 164 की मृत्यु) का सामना किया है।
महात्मा गांधी का संयुक्त राष्ट्र पर स्थायी प्रभाव रहा है। अहिंसा के उनके आदर्शों ने अपनी स्थापना के समय संयुक्त राष्ट्र को काफी प्रभावित किया।

वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र ने 2 अक्तूबर, महात्मा गांधी के जन्मदिन को, अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया।
वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने के प्रस्ताव को अपनाया।

यह संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों एवं मूल्यों के साथ इस कालातीत कार्य के समग्र लाभ व इसकी अंतर्निहित संगतता को पहचानता है।
अंतर्राष्ट्रीय समानता दिवस के लिये दलील: वर्ष 2016 में सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये असमानताओं को समाप्त करने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र में पहली बार बी.आर.अम्बेडकर जयंती मनाई गई। भारत ने 14 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय समानता दिवस घोषित किये जाने के लिये दलील दी।

संयुक्त राष्ट्र की चुनौतियाँ एवं सुधार
संयुक्त राष्ट्र प्रशासनिक एवं वित्तीय-संसाधन संबंधी चुनौतियाँ
विकास सुधार: संयुक्त राष्ट्र विकास सहायता फ्रेमवर्क पर केंद्रित और एक निष्पक्ष, स्वतंत्र एवं सशक्त निवासी समन्वयक के नेतृत्त्व में सतत् विकास लक्ष्यों (एजेंडा 2030) को संयुक्त राष्ट्र विकास प्रणाली (UNDS) में देशीय दलों की नई पीढ़ी के उद्भव के लिये स्थूल परिवर्तनों की आवश्यकता होगी।
प्रबंधन सुधार: वैश्विक चुनौतियों का सामना करने एवं तेज़ी से परिवर्तित होते विश्व में प्रासंगिक बने रहने के लिये संयुक्त राष्ट्र को प्रबंधकों एवं कर्मचारियों को सशक्त बनाना होगा, प्रक्रियाओं को सरल करना होगा, जवाबदेही व पारदर्शिता बढ़ानी होगी और इसके अधिदेश के वितरण में सुधार करना होगा।
इसमें दक्षता में सुधार, नकल से बचने एवं संपूर्ण संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली को दुरुस्त करने संबंधी मुद्दे शामिल हैं।
वित्तीय संसाधन: सदस्य राज्यों द्वारा योगदान उनके भुगतान करने की क्षमता के सिद्धांत के अनुरूप होना चाहिये।
सदस्य राज्यों को अपने योगदान का बिना शर्त, समय पर एवं पूर्ण भुगतान करना चाहिये, क्योंकि भुगतान में देरी ने संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में एक अभूतपूर्व वित्तीय संकट उत्पन्न कर दिया है।
वित्तीय सुधार विश्व निकाय के भविष्य की कुंजी है। पर्याप्त संसाधनों के बिना संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियाँ एवं भूमिका नकारात्मक ढंग से प्रभावित होंगी।

शांति एवं सुरक्षा संबंधी मुद्दे

शांति एवं सुरक्षा को खतरा: शांति एवं सुरक्षा के लिये संभावित खतरे जिनका सामना संयुक्त राष्ट्र को करना पड़ रहा है, निम्नलिखित हैं-
गरीबी, बीमारी एवं पर्यावरण संबंधी समस्याएँ (सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों के रूप में चिह्नित मानव सुरक्षा को खतरे)।
राष्ट्रों के मध्य संघर्ष।
राष्ट्रों के भीतर हिंसा एवं बड़े पैमाने पर मानव अधिकारों का उल्लंघन।
संगठित अपराध के कारण आतंकवाद को खतरा।
हथियारों का प्रसार – विशेष रूप से WMD (Weapon of Mass Destruction) के साथ-साथ पारंपरिक हथियार।
आतंकवाद: ऐसे राष्ट्र जो आतंकवादी समूहों का समर्थन करते हैं, जैसे कि पाकिस्तान को विशेष रूप से इन कार्यों के लिये ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाता है। अभी तक संयुक्त राष्ट्र के पास आतंकवाद की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है और भविष्य में भी स्पष्ट परिभाषा बनाने की कोई योजना नहीं है।
नाभिकीय शस्त्र प्रसार: वर्ष 1970 में परमाणु अप्रसार संधि पर 190 देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे। इस संधि के बावजूद नाभिकीय शस्त्र भंडार उच्च स्तर बने हुए हैं और कई राष्ट्रों ने इन विनाशकारी हथियारों को विकसित करना जारी रखा है। अप्रसार संधि की विफलता संयुक्त राष्ट्र की अप्रभाविकता एवं उल्लंघन करने वाले राष्ट्रों पर महत्त्वपूर्ण विनियमों को लागू करने में इसकी असमर्थता की द्योतक है।
सुरक्षा परिषद में सुधार
सुरक्षा परिषद की संरचना: यह काफी हद तक स्थिर रही है, जबकि संयुक्त राष्ट्र महासभा की सदस्यता में महत्त्वपूर्ण विस्तार हुआ है।
वर्ष 1965 में सुरक्षा परिषद के सदस्यों की संख्या 11 से 15 तक बढ़ाई गई थी। स्थायी सदस्यों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ था और तब से परिषद में सदस्यों की संख्या अपरिवर्तित रही है।
इसने परिषद के प्रतिनिधित्व की विशेषता का अवमूल्यन किया है। अधिक प्रतिनिधित्व वाली एक विस्तारित परिषद के पास अधिक राजनीतिक शक्तियाँ एवं वैधता होगी।
भारत ब्राज़ील, जर्मनी और जापान (जी-4) के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की मांग करता रहा है। चारों देश संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष निकाय में स्थायी सीटों के लिये एक-दूसरे की दावेदारी का समर्थन करते हैं।
स्थायी सदस्यों की श्रेणी का कोई भी विस्तार पूर्व-निर्धारित चयन के बजाय एक सहमत मानदंडों के आधार पर होना चाहिये।
यूएनएससी वीटो पावर: यह अक्सर देखा गया है कि संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों के प्रति ज़िम्मेदारी यूएनएससी वीटो के विवेकपूर्ण उपयोग पर निर्भर करती है।
वीटो पावर: पाँच स्थायी सदस्यों के पास वीटो पावर है, जब कोई स्थायी सदस्य वीटो पॉवर का उपयोग करता है, तो कितना भी अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हो, परिषद प्रस्ताव को नहीं अपना सकती है। यहाँ तक कि यदि अन्य चौदह देश इसके पक्ष में वोट देते हैं, तो भी केवल एक वीटो इस पर भारी पड़ेगा।
भविष्य हेतु वीटो पावर पर प्रस्ताव हैं:
वीटो के उपयोग को महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों तक सीमित करना।
वीटो का उपयोग करने से पूर्व कई राज्यों की सहमति की आवश्यकता।
वीटो को पूरी तरह से समाप्त करना।
वीटो पावर में कोई भी सुधार बहुत मुश्किल होगा:
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 108 एवं 109 के तहत 5 स्थायी सदस्यों को चार्टर में किसी भी संशोधन पर वीटो पॉवर प्रदान किया गया है, जिससे UNSC वीटो पॉवर में किसी भी संशोधन को मंज़ूरी देने के लिये इनकी सहमति आवश्यक है।
गैर-पारंपरिक चुनौतियाँ
यह अपनी स्थापना के बाद से संयुक्त राष्ट्र शांति बनाए रखने, मानव अधिकारों की रक्षा करने, अंतर्राष्ट्रीय न्याय के लिये रूपरेखा स्थापित करने और आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ काम कर रहा है। जलवायु परिवर्तन शरणार्थी एवं पॉपुलेशन एजिंग जैसी नई चुनौतियाँ हैं जिन पर इसे कार्य करना है।
जलवायु परिवर्तन: मौसम पैटर्न में परिवर्तन जो खाद्य उत्पादन के लिए खतरा उत्पन्न करता है, समुद्र का बढ़ता स्तर जो विनाशकारी बाढ़ के खतरे में वृद्धि करता है, वैश्विक रूप से जलवायु परिवर्तन के अभूतपूर्व प्रभाव क्षेत्र हैं। वर्तमान की ठोस कार्रवाई के बिना भविष्य में इन प्रभावों के विरुद्ध अनुकूलन क्षमता प्राप्त करना मुश्किल होगा।

बढ़ती जनसंख्या: अगले 15 वर्षों में विश्व की जनसंख्या में एक बिलियन से अधिक वृद्धि होने का अनुमान है, इसके वर्ष 2030 में 8.5 बिलियन, वर्ष 2050 में बढ़कर 9.7 बिलियन और वर्ष 2100 तक 11.2 बिलियन होने का अनुमान है।
विश्व की जनसंख्या वृद्धि दर के अधारणीय स्तर तक पहुँचने से बचने के लिये इसे बहुत कम करना आवश्यक है।
पॉपुलेशन एजिंग: यह इक्कीसवीं सदी के सबसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तनों में से एक होने की ओर अग्रसर है, जिसमें समाज के लगभग सभी क्षेत्र श्रम और वित्तीय बाज़ार, वस्तु एवं सेवाओं की मांग, जैसे कि आवास, परिवहन व सामाजिक संरक्षण, साथ ही साथ पारिवारिक संरचना तथा अंतर-पीढ़ी संबंध पर प्रभाव शामिल हैं।

शरणार्थी: आँकड़ों के अनुसार, विश्व में उच्चतम स्तर पर विस्थापन हो रहा है।
वर्ष 2016 के अंत तक संघर्ष एवं उत्पीड़न के कारण संपूर्ण विश्व में अभूतपूर्व रूप से 65.6 मिलियन लोग अपने मूल स्थानों से विस्थापित हो गए हैं।
इनमें से लगभग 22.5 मिलियन शरणार्थी हैं, जिनमें से आधे से अधिक 18 वर्ष से कम उम्र के हैं।
10 मिलियन व्यक्ति राष्ट्र विहीन हैं, जिन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोज़गार और एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की स्वतंत्रता जैसे बुनियादी अधिकारों तक पहुँच से वंचित रखा गया है।

निष्कर्ष

कई कमियों के बावजूद संयुक्त राष्ट्र ने द्वितीय विश्व युद्ध की तुलना में मानव समाज को अधिक सभ्य, विश्व को अधिक शांतिपूर्ण एवं सुरक्षित बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
सभी देशों के लिये विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक निकाय होने के नाते लोकतांत्रिक समाज के निर्माण, अत्यंत गरीबी में जीवन यापन करने वाले लोगों के आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन के संबंध में पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के संदर्भ में मानवता के प्रति इसका उत्तरदायित्व एवं महत्त्व दोनों ही बहुत अधिक हैं।

Note : इन Science Questions  को तैयार करने में पूर्ण सावधानी बरती गई है। फिर भी अगर कोई गलती मिलती है, तो कमेंट बॉक्स में हमें इससे अवगत कराएं। हमारी टीम जल्द से जल्द उसे ठीक कर देगी।

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1. किसी निश्चित कूट भाषा में, SHEER को 21102220 के रूप में कूटबद्ध किया जाता है और NIGHT को 16391022 के रूप में कूटबद्ध किया जाता है। उसी कूट भाषा में RIGHT को किस रूप में कूटबद्ध किया जाएगा? [SSC_GD 02-12-21, II-Shift]

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2. किसी निश्चित कूट भाषा में, 'FEAST' को '9842223' के रूप में कूटबद्ध किया जाता है। उसी कूट भाषा में 'CLOSE' को किस रूप में कूटबद्ध किया जाएगा? [SSC_GD 07-12-21, III-Shift]

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3. यदि SENSIBLE को 10 के रूप vec pi लिखते हैं, और SAMUELS को 9 के रूप से, तो NADAL को किस रूप में लिखा जाएगा? [SSC_GD 03-03-19, III-Shift]

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4. यदि RED को 19 के रूप में कूटबद्ध किया गया है, तो WED को कैसे कूटबद्ध किया जाएगा? [SSC_GD 03-03-19, I-Shift]

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5. किसी विशिष्ट कूट भाषा में, 'how are you' को 'so me 10' 'you are intelligent' को 'the lo m * e' और 'are they lazy' को 'me ca ya' लिखा जाता है। इस भाषा में 'how are they' को क्या लिखा जाएगा? [SSC_GD 03-12-21, II-Shift]

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6. एक विशिष्ट कूट भाषा में, 'FILE' को 'LIEF' और 'YOUR' को 'UORY' लिखा जाता है। इस भाषा में 'MARK' को क्या लिखा जाएगा? [SSC_GD 03-12-21, I-Shift]

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